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जिसके लिये मेरे बहुत से मित्रो ने भी हैदराबाद के श्रार्य सत्याग्रह का उदाहरण देकर, हमे भी उसका अनुकरण करने के लिए लिखा है । परन्तु हमे इसमें जल्दी नही करनी चाहिए । सत्याग्रह कोई साधारण सा काम नही है । आर्यसमाज ने हैदराबाद के सत्याग्रह को किस प्रकार परिश्रम करके सफल बनाया था आप सबके सामने है। हजारो वीरो ने अपने आपको प्रसन्नता के साथ सत्याग्रह कार्य के लिए पेश किया, श्रार्यसमाजी भाइयो ने लाखो रुपया दान देकर आन्दोलन मे जान डाली, सर्वप्रथम आर्य समाज के सर्वमान्य नेता श्री नारायण स्वामी जी महाराज धर्म की रक्षार्थ हैदराबाद के सत्याग्रह में गए । गुरुकुल और कालेजो के विद्यार्थी सब कुछ छोडकर सत्याग्रह में सम्मिलित हुए । इन सबसे अधिक सफलता की कुञ्जी यह थी कि श्रार्यसमाज के चोटी के नेता और धनिक वर्ग स्त्रय सत्याग्रह का नेतृत्व करके जेल जा रहे थे । इन उच्च कोटि के महानुभावो जेल जाने का प्रभाव रियासत तथा जनता पर पडा । जनता ने दिल खोलकर जन और धन से सहयोग दिया । अत मे रियासत को हार माननी पडी ।
हिंदू महासभा का भागलपुर का मोर्चा तो कल की ही बात है हिंदू महासभा के प्रधान वीर सावरकरजी से लेकर सारे हिन्दू नेता अपने अधिकारो की रक्षार्थं भागलपुर में जा डटे, जिनमे ब्रिटिश सरकार के कृपापात्र सर और राजा भी सम्मिलित है, अपने अधिकारो के प्रश्न जीवन-मरण की समस्या समझकर वहा गिरफ्तार हो गए। हिन्दू नेताम्रो के इस त्याग ने सारे भारत की सस्थाओ की सहानुभूति प्राप्त कर ली और बिहार गवर्नर के इस कार्य की सारे भारत मे निन्दा हुई । क्या जैन समाज के पास यह सब तय्यारी है ? मै तो यह समझता हूँ कि धर्म स्थान तथा देवालय की रक्षा करना उतना पुण्य का कार्य है जितना कि अपनी तरफ से चैतालय या देवालय बनवाना | जैन समाज धर्म क्रिया पालन करने मे बहुत ही प्रतिष्ठित है । हमारी जाति का साधुवर्ग यदि इस ओर थोडा-सा ध्यान दे देगा तो मुझे आशा है कि इस कार्य की सफलता में कोई देर न लगेगी । जैन समाज ने आज तक कोई ऐसा मोर्चा नही लिया है। हम आज महाराज सिरोही से अपने जन्मदिन धार्मिक अधिकार मागते है, यदि जैन समाज का साधुवर्ग, धनी तथा सरकार के कृपा पात्र भी अपने धार्मिक अधिकारो की रक्षार्थं एक प्लेटफार्म पर एकत्रित होकर धर्म पर सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हो तो सत्याग्रह का नाम लेना चाहिए ।
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जैन समाज इस समय तक दब्बू नीति से काम लेती रही है, मुझे मालूम है कि कई बार जैन समाज ने सरकार तथा रियासतो मे अपने अधिकार मनवाने के लिए धन के बल से काम लिया है और मुह मागा रुपया लुटाया है। उसका ही यह कारण है कि हरएक के मुह मे पानी ना जाता है और वह समझता है जैन समाज एक तीर्थभक्त समाज है । इसलिए जिनके भी राज्य या सीमा मे कोई जैन तीर्थं या धर्मस्थान होता है वह उसको कमाई का साधन बनाना चाहता है। और जितना धन जैन समाज से लूटा जाता है लूटता है । भला इनसे कोई पूछे कि इसमे इनका क्या लगा है । हमारे पूर्वजो ने अपने धन और बल से मन्दिरो को बनवाया था फिर यह किस कारण हमे तग करते है । हमने माना कि जैन समाज मे बडे-बडे धनाढ्य है और वह झगडे मे न पडकर अपने रुपये के बल से काम निकालना ज्यादा अच्छा समझते है परंतु इससे वहुत बडी हानि
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