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पर मातृभूमि के लिए, मेवाड़ के लिए,
वर्वाद था आरावली पहाड के लिए । राणा प्रताप के तो मुट्ठी भर जवान थे, दुश्मन तथा गद्दार जमी आसमान थे। दुर्भाग्य से सेना की रसद भी समाप्त थी, बहुँ भोर निराशा-ही-निराशा व्याप्त थी।
लगता था मातृभूमि पर हो जायगा कब्जा,
सबने कहा प्रताप जा दुश्मन को सर झुका । संकट के समय जैन ऐन वक्त पं आया, पाकर प्रतापसिंह को निज शीश झुकाया। सोना व रजत-रत्न का वह ढेर लगाया, जिससे प्रताप ने कि शत्रु भार भगाया ।
वीरो मे वीर भामाशाह दानवीर या,
राणा प्रतापसिंह का बूढा वजीर पा॥ तादादे-जायदाद का सुनियेगा हाल तक, मलती कुमुक उसी से ठीक बारह साल तक । होती रसद पच्चीस हजार फौज के लिए, जाटों व गूजरो हितार्थ-मौज के लिए ॥
वीरो में वीर भामाशाह दानवीर था,
राणा प्रतापसिंह का बूढा वजीर था ।। दुहरा रहा इतिहास मान हू-ब-हू गाथा, मुक-झुक रहा राष्ट्रीयता के वास्ते माया । सीमा का हर जवान अब राणा प्रताप है, बेटा हरएक हिन्द का दुश्मन का बाप है ।।
दंगे लहू हिमालया पहाड के लिए,
उजड़ें स्थय कि चीन के उनाड़ के लिए ।। अंगार भी वरसाएगे, बरसाएंगे सोना, पत्थर पै पटक दें चलो चीनी का खिलौना। बारूद बने मोढ़नी बारूद बिछौना, सोकर जगा है देवा का प्रत्येक ही कोना ।
सोना वरस रहा है गरीबोअमीर से, निश्चित बचेगा राष्ट्र सिर्फ दानवीर से ॥