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श्राखो से देखते हो कुछ तो खवर लो अपने
भारत-दुर्दशा
क्या दुर्दशा' वतन की । उजडे हुए चमन की ॥१॥
फाकाकशी' से लाखो वे मौत मर रहे है । farat हुई है हालत व किस कदर वतन की ॥२॥ "श्नकलक" "वीर" जैसे पैदा हुए यही पर | यू स्वर्ग से है बढकर भूमी मेरे वतन की ||३||
तीरो तुफग 3 का अव हरगिज न गम करेंगे । लेगे जान देकर हम श्रावरू* वतन की ॥४॥ अपनी जिन्दगी का । करें वतन की ||५||
सबसे बडा यही है फर्ज हमले से दुश्मनो के रक्षा
तेरी चिता र्प मेला हर साल ही लगेगा । ऐ 'दास' जान देकर शोभा बढा वतन की ॥ ६ ॥
वीर प्रतिज्ञा
हम अपनी जिन्दगानी धर्म की खातिर मिटा देगे । अगर आया कोई मौका ये जलवा भी दिखा देगे ||१||
जो है सरगार दौलत मे, जो है मखमूर हशमत मे । यही अशखाश इक दिन कुछ न कुछ करके दिखा देंगे ||२||
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हमारे नौजवां जैनी नही हटने के पीछे श्रव । बनाकर संगठन अपना कदम आगे बढा देगे ||३||
रहा गर सगठन अपना, रहा गर दम मे दम अपना । किसी दिन देखना कलियुग मे हम सतयुग दिखा देंगे ||२||
वो गालिया भी हमको देगा तो भी सुन लेंगे । दिले दुश्मन पं यूं तेगे करम अपनी चला देंगे ||५|
समझ रक्खा है क्या ऐ 'दास' अपने नाल-ए-दिल को । जमी का जिक्र ही क्या आसमां तक को हिला देंगे || ६ ||
१ वुरी हालत २ भूखे मरना ३ तमचा ४ इज्जत ।
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