Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
चन्द्र-सूर्य को ग्रहपति माना है।, शेष छह को ग्रह माना है,राहु-केतु को भिन्न न मानकर एक केतु को ही माना
अट्ठासी ग्रह भी माने हैं। अन्य ग्रन्थों में नौ ग्रह माने हैं। ग्रहों के प्रभाव के संबंध में वशिष्ठ और बृहस्पति नाम के ज्योतिर्विदाचार्य ने इस प्रकार कहा है - वशिष्ठ - ग्रहा राज्यं प्रयच्छंति, ग्रहा राज्यं हरन्ति च ।
ग्रहैस्तु व्यपितं सर्व, त्रैलोक्यं सचराचरम् ॥ बृहस्पति - ग्रहाधीनं जगत्सर्वं, ग्रहाधीना नरामराः।
कालं ज्ञानं ग्रहाधीनं, ग्रहाः कर्मफलप्रदाः॥ (३२ वां गोचर प्रकरण - वृहदैवज्ञरंजन, पृ. ८४)
(४) नक्षत्र और नरसमूह नक्षत्र शब्द की रचना
१. न क्षदते हिनस्ति 'क्षद' इति सौत्रो धातु : हिंसार्थ आत्मनेपदी। ष्टन (उ. ४/१५९) नभ्रानपाद् (६/३/७५) इति नञः प्रकृतिभावः।
२. णक्ष गतौ (भ्वा. प. से.) नक्षति।
असि-नक्षि-यजि-वधि-पतिभ्यो त्रन् (उ. ३/१०५) प्रत्यये कृते। ३. न क्षणोति. क्षणु हिंसायाम् (त. उ. से.) (ष्ट्रन्) (उ. ४/१५९) नक्षत्रं । ४. न क्षत्रं देवत्वात् क्षत्र भिन्त्वात्।
जो क्षत-खतरे से रक्षा करे वह 'क्षत्र' कहा जाता है। उस 'क्षत्र' का जो 'रक्षा करना' धर्म है वह क्षात्र धर्म' कहा जाता है। क्षत्र की संतान 'क्षत्रिय' कही जाती है।
— इस भूतल के रक्षक नर 'क्षत्र' हैं और नभ - आकाश में रहने वाले रक्षक देव 'नक्षत्र' हैं। इन नक्षत्रों का नर क्षत्र से संबंध नक्षत्र संबंध है।
अट्ठाईस नक्षत्रों में से 'अभिजित् ' नक्षत्र को व्यवहार में न लेकर सत्ताईस नक्षत्रों से व्यवहार किया है। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण हैं अर्थात् चार अक्षर हैं। इस प्रकार सत्ताईस नक्षत्रों के १०८ अक्षर होते हैं। इन १०८ अक्षरों को बारह राशियों में विभक्त करने पर प्रत्येक राशि के ९ अक्षर होते हैं।
इस प्रकार सत्ताईस नक्षत्रों एवं बारह राशियों १०८ अक्षरों से प्रत्येक प्राणी एवं पदार्थों के 'नाम' निर्धारित किये जाते हैं।
वह नक्षत्र और नर समूह का त्रैकालिक संबंध है।
चर स्थिर आदि सात, अंध काण आदि चार इन ग्यारह संज्ञाओं से अभिहित ये नक्षत्र प्रत्येक कार्य की सिद्धि आदि में निमित्त होते हैं।
[ १७ ]