Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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निमित्तशास्त्र के प्रति जो मानव की अगाध श्रद्धा है, वह भी ग्रह-नक्षत्रों के शुभाशुभ प्रभाव के कारण ही है।
ज्योतिषी देवों का जीव-जगत् से संबंध इस मध्यलोक के मानव और मानवेत्तर प्राणी-जगत से चन्द्र आदि ज्योतिषी देवों का शाश्वत संबंध है। क्योंकि वे सब इसी मध्यलोक के स्वयं प्रकाशमान देव हैं और वे इस भूतल के समस्त पदार्थों को प्रकाश प्रदान करते रहते हैं। ज्योतिष लोक और मानव लोक का प्रकाश्य-प्रकाशक का भाव संबंध इस प्रकार है -
(१) चन्द्र शब्द की रचना चदि आह्लादने धातु से 'चन्द्र' शब्द सिद्ध होता है। चन्द्रमाह्लादं मिमीते निर्मिमीते इति चन्द्रमा प्राणिजगत् के आह्लाद काजनक चन्द्र है, इसलिये चन्द्रदर्शन की परम्परा प्रचलित है।
चन्द्र के पर्यायवाची अनेक हैं उनमें से कुछ ऐसे पर्यायवाची हैं जिनमें इस पृथ्वी के समस्त पदार्थों से एवं पुरुषों से चन्द्र का प्रगाढ़ संबंध सिद्ध है।
कुमुदबान्धव – जलाशयों में प्रफुल्लित कुमुदिनि का बंधु चन्द्र है इसलिये 'कुमुदबान्धव' कहा जाता है। कलानिधि चन्द्र के पर्याय हिमांशु, शुभ्रांशु, सुधांशु की अमृतमयी कलाओं से कुमुदिनी का सीधा संबंध है। इसकी साक्षी है राजस्थानी कवि की सूक्ति - दोहा – जल में बसे कुमुदिनी, चन्दा बसे आकाश।
जो जाहु के मन बसे, सो ताहु के पास ॥ औषधीश – जंगल की जड़ी बूटियां 'औषधी' हैं - उनमें रोग-निवारण का अद्भुत सामर्थ्य सुधांशु की सुधामयी रश्मियों से आता है।
मानव आरोग्य का अभिलाषी है, वह औषधियों से प्राप्त होता है - इसलिये औषधीष चन्द्र से मानव का घनिष्ठ संबंध है।
निशापति - निशा-रात्रि का पति – चन्द्र है।
'श्रमजीवी दिन में 'श्रम' करते हैं और रात्रि में विश्राम करते हैं । आह्लादजनक चन्द्र की चन्द्रिका में विश्रान्ति लेकर मानव स्वस्थ हो जाता है इसलिये मानव का निशानाथ से अति निकट का संबंध सिद्ध होता है। जैनागमों में चन्द्र के एक 'शशि' पर्याय की ही व्याख्या है। १. सभी सदस्स विसिट्ठऽत्थो
प्र. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चई - चंदे ससी, चंदे ससी? उ. गोयमा! चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो मियंके विमाणे, कंता देवा, कंताओ देवीओ, कंताई आसणसयण-खंभ-भंडमत्तोवगरणाइं, अप्पणा वि यणं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभए पियदंसणे सुरूवे से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चई - 'चंदे ससी, चंदे ससी'। - भग. स. १२, उ.६, सु. ४ शशि शब्द का विशिष्टार्थ प्र. हे भगवन् ! चंद्र को 'शशि' किस अभिप्राय से कहा जाता है ?
उ.हे गौतम! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के मृगांक विमान में मनोहर देव, मनोहर देवियां तथा मनोज्ञ आसन-शयन-स्तम्भभाण्ड-पात्र आदि उपकरण हैं और ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र स्वयं भी सौम्य, कान्त, सुभग, प्रियदर्शन एवं सुरूप है।
हे गौतम ! इस कारण से चन्द्र को 'शशि' (या सश्री) कहा जाता है।
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