Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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(२) सूर्य शब्द की रचना सू प्रेरणे धातु से 'सूर्य' शब्द सिद्ध होता है। सुवति-प्रेरयति कर्मणि लोकान् इति सूर्यः – जो प्राणि मात्र को कर्म करने के लिये प्रेरित करता है वह सूर्य
सूरज - ग्रामीण जन 'सूर्य' को 'सूरज' कहते हैं। सु ऊर्ज से सूर्ज या सूरज उच्चारण होता है। सु श्रेष्ठ - ऊर्ज = ऊर्जा - शक्ति। . सूर्य से श्रेष्ठ शक्ति प्राप्त होती है। सूर्य के पर्याय अनके हैं। इनमें कुछ ऐसे पर्याय हैं, जिनसे सूर्य का मानव के साथ गहन संबंध सिद्ध होता है। सहस्त्रांशु – सूर्य की सहस्त्र रश्मियों से प्राणियों को जो 'ऊष्मा प्राप्त होती है, वही जगत् के जीवों का जीवन
प्रत्येक मानव शरीर में जब तक ऊष्मा - गर्मी रहती है, तब तक जीवन है। ऊष्मा समाप्त होने के साथ ही जीवन समाप्त हो जाता है।
भास्कर, प्रभाकर, विभाकर, दिवाकर, घुमणि, अहर्पति, भानु आदि पर्यायों से 'सूर्य' प्रकाश देने वाला देव है। मानव की सभी प्रवृत्तियां प्रकाश में ही होती हैं। प्रकाश के बिना यह अकिंचित्कर है। सूर्य के ताप से अनेक रोगों की चिकित्सा होती है सौर ऊर्जा से अनेक यंत्र शक्तियों का विकास हो रहा है। इस प्रकार मानव का सूर्य से शाश्वत संबंध है। जैनागमों में सूर्य के एक 'आदित्य पर्याय की व्याख्या द्वारा सभी कालविभागों का आदि सूर्य कहा गया है।
(३) गृह-ग्रह की रचना ग्रह उपादाने धातु से यह ग्रह शब्द सिद्ध होता है।
जैनागमों में छह ग्रह और आठ ग्रह का उल्लेख है। १. सूर सहस्स विसिट्ठत्थो -
प्र.से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ - 'सूरे आदिच्चे सूरे आदिच्चे'? उ.गोयमा! सुरादीया णं समयाइवा, आवलियाइवा, जाव ओसप्पिणीइ वा, उस्सप्पिणीइ वा।
से तेण→णं गोयमा! एवं वुच्चइ - 'सूरे आदिच्चे सूरे आदिच्चे।' - भग. स. १२, उ. ६, सु.५ सूर्य शब्द का विशिष्टार्थ
प्र. हे भगवन् ! सूर्य को आदित्य किस अभिप्राय से कहा जाता है ? उ. हे गौतम! समय, आवलिका यावत् अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी काल का आदि कारण सूर्य है।
हे गौतम! इस कारण से सूर्य को आदित्य कहा जाता है। छ तारग्गहा पण्णत्ता, तंजहा - १. सुक्को, २. बुहे, ३. बहस्पति, ४. अंगारके, ५. साणिच्छरे, ६. केतु। - ठाणं अ. ६, सु. ४८ अट्ठ महग्गहा पण्णत्ता तंजहा - १. चन्दे, २. सूरे, ३. सुक्के, ४. बुहे, ५. बहस्सति, ६. अंगारके, ७. सणिच्छरे, ८. केतु । - ठाणं ८, सू.६/३