Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 13
________________ २. सूर्य का चन्द्र से संयोग २. नक्षत्रों के सूत्र ३. सूर्य का ग्रहों से संयोग ३. ताराओं के सूत्र ४. सूर्य का नक्षत्रों से संयोग १. काल के भेद प्रभेद ५. सूर्य का ताराओं से संयोग २. अहोरात्र के सूत्र १. चन्द्र, सूर्य के संयुक्त सूत्र ३. संवत्सर के सूत्र २. चन्द्र, सूर्य, ग्रह के संयुक्त सूत्र ४. औपमिक काल के सूत्र ३. चन्द्र, सूर्य ग्रह नक्षत्र के संयुक्त सूत्र ५. काल और क्षेत्र के सूत्र ४. चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, ताराओं के संयुक्त सूत्र दोनों प्रज्ञप्तियों की नियुक्ति आदि व्याख्याएँ द्वादश उपांगों के वर्तमान मान्य क्रम में चन्द्रप्रज्ञप्ति छठा और सूर्यप्रज्ञप्ति सातवां उपांग है - इसलिये आचार्य मलयगिरि ने पहले चन्द्रप्रज्ञप्ति की वृत्ति और बाद में सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्ति रची होगी। यदि आचार्य मलयगिरिकृत चन्द्रप्रज्ञप्ति-वृत्ति कहीं से उपलब्ध है तो उसका प्रकाशन हुआ है या नहीं ? या अन्य किसी के द्वारा की गई नियुक्ति, चूर्णि या टीका प्रकाशित हो तो अन्वेषणीय है। आचार्य मलयगिरि ने सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्ति में लिखा है - सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति नष्ट हो गई है। अतः गुरु कृपा से वृत्ति की रचना कर रहा हूँ। नामकरण और विभाजन सभी अंग-उपांगों के आदि या अन्त में कहीं न कहीं उनके नाम उपलब्ध हैं किन्तु इन दोनों उपांगों की उत्थानिका या उपसंहार में चन्द्रप्रज्ञप्ति या सूर्यप्रज्ञप्ति का नाम क्यों नहीं है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है। दो उपांगों के रूप में इनका विभाजन कब और क्यों हुआ ? यह शोध का विषय है। ग्रह, नक्षत्र, तारा ज्योतिष्क देव हैं - इनके इन्द्र हैं चन्द्र-सूर्य - ये दोनों ज्योतिषगणराज है। उत्थानिका और उपसंहार के गद्य-पद्य सूत्रों में ज्योतिषगणराजप्रज्ञप्ति' नाम ही उपलब्ध है किन्तु इस नाम से ये उपांग प्रख्यात न होकर चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति नाम से प्रख्यात हुए हैं। 'ज्योतिष-राज-प्रज्ञप्ति' का संकलनकर्त्ता ग्रन्थ के प्रारम्भ में ज्योतिष-गण-राज-प्रज्ञप्ति' इस एक नाम से की गई स्वतंत्र संकलित वृत्ति को ही कहने की प्रतिज्ञा करता है। इसका असंदिग्ध आधार चन्द्रप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ में दी हुई तृतीय और चतुर्थ गाथा है। अस्या नियुक्तिरभूत, पूर्व श्री भद्रबाहुसूरिकृता। कलिदोषात् साऽनेशद् व्याचक्षे केवलं सूत्रम् ॥ सूर्यप्रज्ञप्तिमहं गुरूपदेशानुसारतः किंचित् । विवृणोमि यथाशक्तिं स्पष्टं स्वपरोपकाराय॥ - सूर्य० प्र० वृत्ति प्र०१ ३. गाहाओ - फुड-वियड-पागडत्थं, वुच्छं पुव्वसुय-सार-णिस्संदं॥ सुहूमं गणिणोवइटें जोइसगणराय-पत्तिं ॥३॥ नामेण इंदभूइत्ति, गोयमो वंदिऊण तिविहेणं। पुच्छइ जिणवरवसहं, जोइसरायस्स पण्णत्तिं ॥४॥ [ १० ]Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 302