Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
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स्तवन - २
(राग : गमे त स्वरुपे) ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा तुम दरिसन हुवे परमानंदा, अहोनिश ध्याऊ तुम देदारा, महेर करीने करजो प्यारा ॥१॥
| आपणने पूंठे जे रहे वळगा, किम करे तेहने
करता अलगा, अलगा कीधा पण रहे वळगा; मोर पिछे न हुवे उभगा ॥ २ ॥
तुमे पण अलगा थये किम सरसे, भक्तिभली आकर्षी लेशे, गगने उडे दूर पडाई, दोरी बळे हाथे रही आइ ॥ ३ ॥
मुज मनडुं छे चपल स्वभावे, तोडे अंतर मुहूर्त प्रस्तावे तुंतो समय समय बदलावे, इमकिम प्रीती न्हावो थाये ॥ ४ ॥
ते माटे तुं साहीब मारो, हुं छु सेवक भवोभव ताहरो; एह संबंधमां म हशो खामी, वाचक मान कहे शिरनामी ॥ ५ ॥
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