Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
View full book text
________________
स्तवन - १०
(राग : प्राचीन) जिनजी चंद्रप्रभु अवधारो के नाथ निहाळजो रे लोल ! बमणी बिरूद गरीब निवाज के वाचा पाळजो रे लोल ॥१॥ हरखे हुं तुम शरणे आव्यो के मुजने राखजो रे लोल चोरटा चार युगल छे भुंडा के ते दूर स्थापजो रे लोल ॥ २ ॥ प्रभुजी पंचतणी परशंसा के ते रूडी स्थापजो रे लोल मोहन महेर करीने दरिशन, मुजने आपजो रे लोल ॥ ३ ॥
तारक तुम पालवमें जाभ्यो के हवे मने तारजो रे लोल , कुतरी कुमति थई छे केडे के, तेहने वारजो रे लोल ॥ ४ ॥
सुंदरी सुमति सोहागण सारी के, प्यारी छे घणी रे लोल तातजी ने विण जीवे चौद, भुवन कयुं आंगणु रे लोल ॥ ५ ॥ लखगुण लक्ष्मणा राणीना जाया, के मुज मन आवजो रे लोल अनुपम अनुभव अमृत मीठी के सुखडी लावजो रे लोल ॥ ६ ॥ दीपती दोढसो धनुष्य प्रमाण के, प्रभुजी नी देहडी रे लोल
देव- दश पुरव लाख मान के आयुष्य वेलडी रे लोल ॥७॥ - निर्गुण निरागी पण हुं रागी के मनमा हेठगी रे लोल
शुभ गुरु सुमति विजय सु पसाय के रामे सुख लह्यो रे लोल ॥ ८