Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

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Page 40
________________ स्तवन - २९ (राग : मेरा जिवन...) सकल समता सुरलतानो, तुही अनुपम कंद रे तुही कृपारस कनक कुंभो, तुंही जिणंद मुणींद रे ॥१॥ प्रभु तुंही तुंही तुंही तुंही युंही धरता ध्यान रे, तुज स्वरुपी जे थया तेणे, लीघु ताहरु तान रे ॥२॥ तुंही अलगो भव थकी पण, भविक ताहरे नाम रे, पार भवनो तेह पामे, अही अचरिज ठाम रे ॥ ३ ॥ जन्म पावन आज मारो, निरखीयो तुझ नूर रे, भवोभव अनुमोदना जे, हुओ आप हजुर रे ॥४॥ एक मारो अक्षय आतम, असंख्यात प्रदेश रे, तारा गुणो छे अनंता, केम करु तास निवेश रे ॥५॥ एक एक प्रदेश ताहरे, गुण अनंतनो वास रे, एम कही तुझ सहज मिलत, होय ज्ञान प्रकाश रे ॥ ६ ॥ ध्यान ध्याता ध्येय एकी, भाव होय एम रे एम करता सेव्य सेवक, भाव होय क्षेम रे ॥७॥ एक सेवा ताहरी जो, होय अचल स्वभाव रे ज्ञानविमल सूरींद प्रभुता, होय सुजस जमाव रे ॥ ८ ॥ लामाल 35

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