Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
View full book text ________________
BARBARAMMERA
स्तवन - २८
(राग - शास्त्रीय) तारी अजबसी योगनी मुद्रा रे लागे मुने मिठी रे, ओ तो टाले मोहनी निद्रा रे, प्रत्यक्ष दीठी रे ॥१॥
लोकोत्तर थी जोगनी मुद्रा, अनुपम आसन सोहे; सरस रचित शुक्ल ध्यान नी धारे सुरनर ना मन मोहे रे॥२॥
त्रिगडे रत्नसिंहासन बेसी, व्हाला भाराचिंहु दिशि चामर ढोळावो; अरिहंत पद प्रभुतानो भोगी, तो पण जोगी कहावो ॥३॥
अमृत झरती मिठी तुजवाणी, जेम आषाढोमेघ गाजे; कान मारग थई हैयडे पेसे, संदेह मनना भांजे रे ॥४॥
कोडी गमे उभा दरबारे, जयमंगल सूर बोले; त्रण भुवन नी रिद्धि तुज आगे, दीसे इम तृण तोले रे ॥५॥
भेद लहु नहि जोग जुगतीनो, सुविधी जिणंद बतावो; प्रेम शंकांति कहे करी करूणा, मुज मन मंदिर आवो रे॥६॥
Loading... Page Navigation 1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68