Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

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Page 56
________________ गीत -५ रोज एवो मनोरथ करे आतमा, के तमारा रटणमां बनुं हुं मगन; ए स्थिति ! स्वामी क्यारे मने सांपडे, के हृदय ने नचावे तमारी लगन.... एम तो रोज मंदिरे आईं प्रभु, बे घडी भक्ति मां हुं विताईं प्रभु, क्रम प्रमाणे क्रियाओ पतातुं प्रभु एक दिन पण शुं एवो न आवे प्रभु ....हो.... के समय ने भुलावे तमारुं भजन...रोज..... एम तो फेरवु रोज माळा प्रभु, जेटला गोठव्यां एमां पारा प्रभु, . एटला नाम लउं हुं तमारा प्रभु, अध वचाळे शुं थंभे नहि आंगळा... हो... ने रहे चालु दिलमां तमारुं स्मरण... रोज... एम तो रोज गुणगान गाउं प्रभु, जोर जे कंठमां हुं धरावें प्रभु, एटला जोर थी हुं गजावू प्रभु, मौन थइ ने कदि शुं हृदयना करे...हो... बस घडीभर तमारा गुणोनु मनन...रोज... - - -

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