Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुरेन्द्र
भक्ति
सुधा
प्रकाशक :
श्री शत्रुंजय टेम्पल ट्रस्ट, पुना
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
COM
भक्ति की शक्ति शंखेश्वर तीर्थ में संघ लेकर आये उपाध्यायश्री उदयरत्न मुनिने भावत्मक प्रार्थनासे मंदिरके
बंद द्वार खोल दिये।
DO00
HODA
ALPHALI
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
a
नमः श्री सुरेन्द्रसूरि गुरवे नमः
सुरण भक्ति सुधा (प्राचीन अर्वाचीन स्तवन संग्रह)
* आशीर्वाद दाता*
प. पू. शासन प्रभावक आ. श्री. वि. यशोभद्रसूरीश्वरजी म. सा. (डहेलावाला)
प. पू. सरल स्वभावी आ. श्री. वि. विमलरत्न सूरीश्वरजी म. सा. (डहेलावाला)
* संपादक* पू. मुनिश्री पीयूषभद्र वि. म. सा. एवं पू. सा. श्री ज्योतीपूर्णाश्रीजी म. सा. पू. सा. श्री मुक्तिपूर्णाश्रीजी म. सा.
* प्रकाशक* श्री शत्रुजय टेम्पल ट्रस्ट - पूना कात्रज-कोंढवा रोड, कोंढवा (बुद्रुक), पूना.
फोन र २६९६०१०५, २६९६२१५४
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
भक्ति माधुर्य मुक्ति थी अधिक तुज भक्ति मुजमनवसी....
मानव जीवन की सफलतां संसार सागर से पार उतर कर आत्म | स्वरुप की प्राप्ति करने में है । संसार सागर से पार उतरने के लिए एवं
आत्म स्वरुप अर्थात की परमात्म स्वरुप पाने के लिए जैन शासन में असंख्य योग बताये है, ईस असंख्य योग में सबसे श्रेष्ठ-प्रेष्ठ और जेष्ठ | योग भक्ति योग है । महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजाने | भी इस बात की पुष्टि हेतु कहा कि, श्रुत सागर का मन्थन करते हुए - परम आनंद की संपदा को देने वाली प्रभु की भागवत भक्ति ही प्राप्त l हुई है । भक्ति की नैया का सहारा लेनवाला संसार सागर की गहराई
को भी पार कर लेता है । किसी शायरने कहा है, "भक्ति कर तो ऐसी जोप्रभुकों रिझावे, तुं क्या प्रभुको मिलने जावे । प्रभु खुद तुझे मिलने को आवे।
नरसिंह मेहता, मीराबाई, तानसेन, कृष्ण महाराजा, श्रेणीक महाराजा, सुलसा श्राविका जैसे भक्तों ने प्रभु भक्ति के द्वारा ही अपने जिवन की सफलता पायी थी । आज भी भक्ति का चमत्कार नजर दिखाई देता है, ऐसी भक्ति में तल्लीन बनने के लिए प्राचीन-अर्वाचीन प्राचीन - अर्वाचीन स्तवनों का संग्रह इस | पुस्तकमें किया गया है।
मातुश्री मदनबाई माणिकचंद धारीवाल के आत्मश्रेयार्थे उद्योगपति रसीकलाल माणिकचंद धारीवाल पूना, घोडनदी के Mail संपूर्ण सहयोग से
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
प.पू. आ. श्री यशोभद्र सूरीश्वरजी म.सा. ( डहेलावाला ) प.पू. l आ. श्री वि. विमलरत्न सूरीश्वरजी म.सा आदिठाणा एवं पू. साध्वीजी भगवंतोकी निश्रामें श्री शत्रुजय भक्तामर तीर्थ में उपधान तप की उपासना चल रही है , उपधान तप के तपस्वीओं प्रभु भक्ति के द्वारा अपने आत्म स्वरुप को उजागर करे उस निमित्त यह पुस्तिका प्रकाशित होने जा रही है, अत: हर भावुक भक्त इस पुस्तक का उपयोग करके अपने कर्म बंधन को काटकर मोक्ष सुख की प्राप्ती करे यही अभ्यर्थना।
| श्री शत्रुजय भक्तामर तीर्थ |दि. ७/१२/२००४
श्री शत्रुजय टेम्पल ट्रस्ट चेअरमन श्री चंदूकान्तभाई वालचंद मामाशाह-पूना
सुरेन्द्र भक्ति सुधा पुस्तक
विमोचन कर्ता
भातक के उद्योगपति दानवीर श्रेष्ठी श्रीमान रसीकलाल
माणिकचंद धारीवाल की सुपुत्री कुमारी जान्हवी रसीकलाल धारीवाल के करकमलों से पुस्तकका विमोचन दि. १२/१२/२००३ रविवार मागशर शुक्ल १
के शुभ दिन हुआ।
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रभु सन्मुख बोलवानी - भाववाही प्रार्थना
सोमवार निगोदमां ज्यारे हतो करूणा करी आपे घणी उगायों महादुःखथीने आप थया शिवपुर धणी; आत्म विकास थतां प्रभु, जाण्यो तने त्रिभुवन धणी, कृपाकरी पहोंचाड मुजने, मुक्ति नी मंजिल भणी...॥
सहु आप्तना शिरदार हे जगदिश तुं एकज सदा, मुजने मल्यो तुं सकल मनने, ईष्ट आपे संपदा; हे नाथ निज सेवकगणी, मुजने स्वीकारो नेहथी, तुलना घरूं हुं ताहरी, उत्कर्ष पामुं जेहथी...॥ तुंमुज विषे हुं तुजविषे नथी भेदभाव जरा हवे, हुं तुं बनु बस एज लगनी, याद करूं हुं क्षण क्षणे; तुं योगीओने गम्य छेने, भक्त जनने बहु गमे, मन वाणीथी गुण वर्णवू, आशिष तुज चरणे झूके.... ॥
मंगलवार एकान्तनी पलों विषे तारी कने आवी प्रभु, अंतरतणी व्यथा बधी, खाली करूं तुजने कही; भव अनंत किधा घणाने, वेदना अगणित सही, मुरझायेला आ बालने, उगारी लो हे तातजी....॥
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
हर श्वासने उच्छवासमा तारूं स्मरण चालू रहो, मुज हृदयना धबकारमां तारूं रटण चालू रहो, मुज नेत्रना हर पलकमां तारूंज तेज रमी रहो, मुज जिंदगीनी हर पलोनो प्राण तुज बनी रहो....॥
अमृत भर्या तुज नयननो आशक बन्यो हुं ज्यारथी, दिव्य ज्योती पामवा, तारा ध्याननी मस्तीगमी, चरणारवींदे रमतु बन्युं, मारूंमन मंदिर थयुं, देवाधिदेव मारा थया आ, शून्यमां सर्जन थयु....॥
बुधवार १) वाणी तमारा गीत गाने आज मनभावन बनी,
आंखो तमारं रूप जोता आज अतीपावन बनी; अंगो तमोने नमन करतां आज पाम्या सफलता, मन स्थिर बन्युं तुज ध्यानथी आजे तजी चपलता..॥
मनमा स्मृति मूर्ती नयनमां वचनमा स्तवना रहे, मुज रक्तना हरबंदमां जिनराज तुज आज्ञा वहे; पहोचाडशे मोक्षे मने जिनधर्म ओवी खातरी, प्रभु आटलुं जनमो जनम, देजे मने करूणा करी..॥
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
离岛岛圈圈瑚岛离岛岛岛离岛圈圈圈圈圈圈圈
१)
२)
३)
गुरुवार
क्यारे प्रभु तुज स्मरणथी आंखो थकी अश्रु सरे, क्यारे प्रभु तुज नामवदता हैयुं मुज गद्गद् बने; क्यारे प्रभु तुज नामश्रवणे देह रोमांचीत बने, क्यारे प्रभु मुज श्वासे श्वासे नाम तारूं संस्मरे ॥
करूणा तणा तुज मानसरमां हंस बनीने हुं रहूं अगणित गुणोना मोती साचा, ते ज हुं निशदिन चरूं, राग जेवा पापना पडछाया पण हुं परिहरूं, प्रभु आपना सानिध्य मां मुज आतमा पावन करूं ॥
मारा जीवनना जीगर वहाला दिलडाना देव तुं, अंतरयामी आ हृदयनो प्राण प्यारो एक तुं, श्वासे श्वासे स्मरण तारूं, रोम रोम भक्तिभरी, तारा प्रेमनी पूजाभरेली, जिंदगी छे माहरी ॥
शुक्रवार
१) श्री ऋषभ प्रभुनुं मुखडुं जोइ मनमयूर नाची उठे, भवोभवतणा पातिक बधा क्षणवारमां दूरे हठे; धन्य धन्य दिवस धन्य धन्य घडी, अमृततणा मेहुला वुठे, श्री नाभिनंदन ऋषभजिनवर आज मुज उपर त्रुठे...
।।
圈圈圈圈圈圈圈廟廟 •瑚岛岛囧囧囧囧囧图
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
१) अगणित करी में आरजू सांभळनारो ना मल्यो,
भक्ति करी खरा भावथी पण झीलनारो ना मल्यो; सेवा सरस घणी आदरी शिरताज स्वामी ना मल्यो, मोडु थयुं पण आखरे मारो मालिक मुजने मल्यो ।
युगना युगो वीती गया, प्रभु आपना दरिसन विना ओळे गयो आ जन्म मारो आपनी भक्ति विना वीती गयुं छे जीवन मारु आपना मिलन विना फोगट गुमाव्यो आ जन्म मारो थइ नथी आराधना ॥
图图图图图图图图画面图图图图图图图图图图画圈圈
शनिवार
१) हैये वसेला नाथ तारी अजब सुंदर मूर्ती,
जोया करू अनिमेष नयने तोय तृप्ति ना थती; वसवा मळे भवोभव मने बस आपनां चरणोंमहि,
अथी वधु ओ नाथ ! हुं मांगु हवे कशुं ये नही..॥ २) हे नाथ ! तमारुं नाम मारा रोमे रोमे गुंजतुं,
जेना प्रचंड प्रतापथी दुष्कर्म नुं दल ध्रुजतुं; स्वामी तमारुं रूप आंखे अq अंजन आंजतुं ज्यां ज्यां नजर मारी फरे दिसे बधे तुंही ज तुं....॥
-
-
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Maa
0000000RTED निर्भय थयो तुज दर्शने भयों बधा नाशी गया, ज्यां आपनुं शरणुं मल्यु, दुःखो बधा दूरे थयां; ज्योती स्वरूप तुज रूप जोतां अक्षय खजानो मली गयो, मने लागे छे के आज हुं संसार सागर तरी रह्यो...॥
रविवार आनंदनो अवधि नथी तमने ज़ोया में ज्यारथी, अंतरतणी खुशबु खीली अनुराग वघ्यो मने आपथी; आदि अनादिथी खोळ तो अक्षय खजानो आपने, एकरार आजे प्रभु माहरे के आजथी मारे तमे.....॥
आ बालनो जो वाळ वांको थाय तुज होते छतां, तो आळ मूकीने हुं कहुं मुझने नथी संभारता; हे नाथ पारस तुज कने हुं मा गणी करूं मांगणी आ बाळने बोलावजे तारी कने घणा प्यारथी...॥
शम कोटि कोटि वार वंदन नाथमारा हे तने. हे तरण तारण नाथ तुं स्वीकार मारा नमनने; हे नाथ शुं जादु भर्यु अरिहंत शब्दोच्चारमां, आफत बधी आशीष बने तुज नाम लेतावारमा...॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १ (राग : मिलेना तुम तो.....) जग उपकारी साहिब मेरा, अतिशय गुण मणिधाम
मारूं मन मोह्यं रे.......
आदि जिनेश्वर अति अलवेसर अहोनिश ध्या ध्यान
मरूदेवा नंदशु........ ॥१॥
दोय कर जोडी तुम सेवा करे, सुरनर किन्नर कोड; प्रातिहारज आठे अहोनिश रे,
कवण करे तुम होड..... ॥२॥
चार रूपेरे चउविह, देशना देता भवियण काज; मानु ओ चउगतिना जन तारवा, छाजे ज्यु
जलधर गाज.......... ॥३॥ ते धन्य प्राणी जीणे, तुम देशना समये निरख्योनूर कर्ण कचोळे वाणी सुधारस, पीधी जीणे भरपूर ॥४॥ हुँ तो तरशुंरे तुमचा ध्यानथी अनुपम अह उपाय, न्याय सागर गुण आगळ साहिबा.
लळीलळी नमे नित पाय......... ॥५॥
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - २
(राग : गमे त स्वरुपे) ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा तुम दरिसन हुवे परमानंदा, अहोनिश ध्याऊ तुम देदारा, महेर करीने करजो प्यारा ॥१॥
| आपणने पूंठे जे रहे वळगा, किम करे तेहने
करता अलगा, अलगा कीधा पण रहे वळगा; मोर पिछे न हुवे उभगा ॥ २ ॥
तुमे पण अलगा थये किम सरसे, भक्तिभली आकर्षी लेशे, गगने उडे दूर पडाई, दोरी बळे हाथे रही आइ ॥ ३ ॥
मुज मनडुं छे चपल स्वभावे, तोडे अंतर मुहूर्त प्रस्तावे तुंतो समय समय बदलावे, इमकिम प्रीती न्हावो थाये ॥ ४ ॥
ते माटे तुं साहीब मारो, हुं छु सेवक भवोभव ताहरो; एह संबंधमां म हशो खामी, वाचक मान कहे शिरनामी ॥ ५ ॥
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन-३ (राग - देशी...)
तुम दरिसन भले पायो प्रथमजिन तुम दरिसन... नाभिनरेसर नंदन निरूपम, माता मरूदेवी जायो..॥१॥
आज अमीरस जलधर वुठो, मानु गंगा जळे न्हायो; सुरतरू सुरमणि प्रमुख अनुपम, ते सवि आज में पायो..॥२॥
युगला धर्म निवारण तारण, जगजस मंडप छायो; प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंत्तर वैरी हरायो..॥३॥
कुदेव कुगुरू कुधर्म निवासे, मिथ्यामत में फसायों; में प्रभु आज से निश्चय किनो, सवि मिथ्यात्त्व मायो..॥ ४ ॥
बेरबेर प्रभु विनंती इतनी, तुम सेवा रस पायो ज्ञानविमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो... ॥ ५ ॥
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ४
3 हुतो पाम्यो प्रभुजीना पाय, आणान लोरे, हुं तो सांभळी त्हारा वेण, कानमा रोपु रे.. जनम जनमना फेरा फरतां, ध्याया न देवाधिदेवा, कुगुरू कुशास्त्रतणे उपदेशे, लाधी नहीं प्रभु सेवा
१
॥
कनक कथीरनो भेद न जाण्यो, काचमणी सम तोल्या विवेकतणी वात में न जाणी, विष अमृत करी घोल्या ॥२॥
समकितनो लवलेश न जाणुं, मिथ्या मतमां खुंत्यो; पाप तणे पंथे परिवरियो, विषये करी विगुत्तो ॥ ३ ॥
कोईक पूरव पुण्य संयोगे, आरज कुले अवतों; आदीश्वर साहिब मने मळीयो, तारक भवजल तरीयो ॥ ४ ॥
आटला दिवस में वात न जाणी, तुजथी रह्यो अलगो; उदयरतन कहे आज थकी प्रभु, तारे पंथे वळग्यो ॥ ५ ॥
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन -५ (राग : शास्त्रीय)
आनंद की घडी आई, सखिरी आज आनंद की घडी आई, करके कृपा प्रभु दरिसन दिनो भव की पीड मीटाई; मोह निद्रासे जागृत करके, सत्य की बात सुनाई;
तनमन हर्ष न माई ॥ १ ॥ नित्या नित्य का तोड बताकर, मिथ्या दृष्टी हराई; सम्यग्ज्ञान की दिव्य प्रभाको, अंतर मे प्रगटाई;
साध्य साधन दिखलाइ ॥ २ ॥ त्याग वैराग्य संयम के योग से, निस्पृह भाव जगाई सर्व संग परित्याग कराकर, अलख धुन मचाई
अपगत दुःख कहलाई ॥ ३ ॥ अपूर्वकरण गुण स्थानक सुखकर, श्रेणी क्षपक मंडवाई वेदतीनोंका छेद कराकर, क्षीण मोही बनवाई
जीवन मुक्ति दिलाई ॥ ४ ॥ भक्त वत्सल प्रभु करूणा सागर, चरण शरण सुखदाई; जस कहे ध्यान प्रभु को ध्यावत, अजर अमर पदपाई;
जन्म मरण मिटजाई ॥५॥
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
西路西園路岛岛岛岛岛岛岛海岛路
स्तवन - ६
(राग : पूजानी ढाळ)
ऋषभ जिनराज मुज आज दिन अतिभलो गुनिलो जेणे तुज नयण दीठो;
दुःख टल्यां सुख मल्यां, स्वामी तुज निरखतां, सुकृत संचय हुओ पाप निठो ॥१॥ कल्प शाखी फल्यो, काम घट मुज मल्यो, आंगणे अमीयनो मेह वुठो; मुज महिराण महिभाण तुज दर्शने,
क्षय थयो कुमति अंधार जुठो... ॥ २ ॥ कवणनर कनकमणि छोडी तृण संग्रहे,
कवण कुंजर तजी करह लेवे; कवण बेसे तजी कल्पतरू बाऊले,
·
तुज तजी अवर सुर कोण सेवे ॥३॥
एक मुजटेक सुविवेक साहिब सदा,
तुज विना देव दूजो न इहुँ तुज वचन राग सुख सागरे झीलतो कर्मभर भ्रम थकी हुं न बीहुं ॥४ ॥ कोडी छे दास विभु ताहरे भलभला,
50/80/08/29/20/20/20/80/BOX 98060 20 20 20 20 20 53
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
माहरे देव तुं एक प्यारो; पतित पावन समो जगत उद्धारकर, महेर
करी मोहे भवजलधिथी तारो ॥ ५ ॥ मुक्तिथी अधिक तुज भक्ति मुज मनवसी
जेहशुं सबळ प्रतिबंध लागो; चमक पाषाण जिम लोहने खेंचशे,
मुक्तिने सहजतुज भक्ति रागो ॥६॥ धन्य ते काय जेणे पाय तुज प्रणमिये,
तुज थुण्यो धन्य तेह धन्य जिह्वा; धन्य ते हृदय जेणे तुज सदा समरतां,
धन्य ते रात ने धन्य दिहा ॥ ७ ॥ | गुण अनंता सदा तुज खजाने भर्या,
एक गुण देत मुज शुं विमासो रयण एक देत शी हाण रयणायरे,
लोकनी आपदा जेणे नासो ॥ ८ ॥ | गंगसम रंग तुज किर्ती कल्लोलिनी,
रवि थकी अधिक तपतेज ताजो श्री नय विजय विबुध सेवक हु आपनो
जसकहे अब मोहे बहु निवाजो ॥ ९ ॥
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ७
(राग : मेरा जीवन...) शुभवेळा शुभअवसरे लाग्यो प्रभुशुं नेह, वाधे मुज मन वालहारे, दिनदिन बमणो नेह; विनतठी अवधार ऋषभजिन...वि....॥१॥
मनमारू लागी रहयुं तुज चरणे एकतान...वि.! हीयढें मुज हेजाल ऊरे, करे उमाहो अपार ; घडी घडी ने अंतरे रे, चाहे तुज दिदार..... ॥२॥
मिठो अमृतनी परेरे, साहिबा तारो संग नयणे नयण मिलावतारे, शीतल थाये अंग... ॥ ३ ॥
अवश्य पणे रे एक घडी रे, जाये तुज विण जेह वरस सो सम साहिबा रे, मुज मन लागे तेह ॥४॥
तुजने तो मुज उपरे रे, महेर न आवे काय, . तोय मुज मन लालचुरे खीण अलगु नवि थाय ॥ ५ ॥
आ संगायत आपणो रे जाणी ने जिनराय;
दरिसण दिजे मुज थकी जिम हंस रतन सुखथाय.. ॥६॥ BREDERERTEREDME01013
D
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन -७ (राग - प्राचीन)
सुमतिनाथ गुण शुं मिलीजी, वाधे मुज मन प्रीती, तेल बींदु जेम विस्तरेजी, जेम जल मांहि भलीरीति, सोभागीजीनशुं,
लाग्यो अविहड रंग ......॥१॥ सज्जन शुंजे प्रीतडीजी, छानी ते न रखाय; परिमल कस्तुरी तणोजी,
महीमाहे महकाय .....॥२॥ आंगळीये नवि मेरू ढंकाये, छाबडिये रवितेज; अंजलीमां जेम गंग न माये,
तिम मुज मन प्रभु हेज. ॥३॥ हुओ छीपे नही अंधर अरूण, जिम, खाता पान सुरंग; पीवत भरभर प्रभु गुण प्याला,
तिम मुज प्रेम अभंग... ॥४॥ ढांकी ईक्षु परालशुंजी, न लहे तेह विस्तार वाचक यश कहे प्रभु तणोजी,
तिम मुज प्रेम प्रकार.... ॥५॥
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ९
(राग : प्राचीन) शत्रुजय जोयाना कोड रे, मारुं मन मोहयुं रे आदिजीन भेट्या ना कोड रे, मारू मन मोहयुं ॥१॥ हेजे हसी मुझ हैयु ज नाचे,
जाणे भेटु जई दोड रे ॥२॥ दीठे शुभमति सुमति पासे,
कुमतिकुगति दई तोडरे ॥ ३॥ लौकिक तीरथ ए कंटक तरु सम,
असुरतरुनो छोड रे ॥४॥ ईण गिरिपर रूडा पंखीडा बोले,
मधुर टहुके छे मोर रे ॥५॥ संघपति ईण गिरि आवे उमंगे,
भेटण होडाहोड रे ॥६॥ ईण गिरी पर दादा ऋषभ बिराजे,
दुःख दुर्गति देई डोल रे ॥ ७ ॥ प्रेम विबुध पाय पंकज लीनो,
__ कान्ती नमे करजोड रे ॥ ८ ॥ MORROTTED 15TORRENT
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १०
(राग : प्राचीन) जिनजी चंद्रप्रभु अवधारो के नाथ निहाळजो रे लोल ! बमणी बिरूद गरीब निवाज के वाचा पाळजो रे लोल ॥१॥ हरखे हुं तुम शरणे आव्यो के मुजने राखजो रे लोल चोरटा चार युगल छे भुंडा के ते दूर स्थापजो रे लोल ॥ २ ॥ प्रभुजी पंचतणी परशंसा के ते रूडी स्थापजो रे लोल मोहन महेर करीने दरिशन, मुजने आपजो रे लोल ॥ ३ ॥
तारक तुम पालवमें जाभ्यो के हवे मने तारजो रे लोल , कुतरी कुमति थई छे केडे के, तेहने वारजो रे लोल ॥ ४ ॥
सुंदरी सुमति सोहागण सारी के, प्यारी छे घणी रे लोल तातजी ने विण जीवे चौद, भुवन कयुं आंगणु रे लोल ॥ ५ ॥ लखगुण लक्ष्मणा राणीना जाया, के मुज मन आवजो रे लोल अनुपम अनुभव अमृत मीठी के सुखडी लावजो रे लोल ॥ ६ ॥ दीपती दोढसो धनुष्य प्रमाण के, प्रभुजी नी देहडी रे लोल
देव- दश पुरव लाख मान के आयुष्य वेलडी रे लोल ॥७॥ - निर्गुण निरागी पण हुं रागी के मनमा हेठगी रे लोल
शुभ गुरु सुमति विजय सु पसाय के रामे सुख लह्यो रे लोल ॥ ८
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ११
(राग : प्राचीन) समय समय सो वार संभारू, तुजशुं लगनी जोर मोहन मुजरो मानी लेजो, ज्यु जलधर प्रीति मोर ॥ १ ॥
माहरे तनमन जीवन तुं ही, तेहमां जुठन जाणो अंतरयामी जगजन नेता, तुं कीहां नथी छानो ॥२॥
जेणे तुजने हियडे नविध्यायो, तास जनम कुण लेखे काचे राचे तें नर मूरख, रतनने दूर उवेखे ॥ ३ ॥
सुरतरू छाया मूकी गहरी, बाउल तले कुण बेसे तारी ओलग लागे मीठी, किम छुडाये विशेषे ॥ ४ ॥
वामानंदन पार्श्वप्रभुजी, अरजी चित्तमां आणो रूपविबुधनो मोहन पभणे, निज सेवक करी जाणो ॥५॥
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १२ ( राग : नवो)
नमो नमो श्री आदि जिणंदने, जिणंदने.. हं करूं रे त्रिविधे प्रणाम रे.. हुं.. पंचाभिगमे नमन करू हुं, केवलनाणी नाम रे, हां भले घरी ललामरे हुं...! प्रभुजी प्यारा, प्राण आधारा, पुण्य थकी में दिठा रें, सरस सुधाथी मीठा प्रभुजी प्यारा रे... हुं....! ॥१॥
तुं निष्कलंकी ने निर्मोही, तुं अद्रोही उदासी रे,
मारा मनमांहेथी प्रभुजी, कहो किम हवे फरी जासी रे.. हुं. ॥२ ॥ जिम पंकजमां मधुकर पेसे, तिम मोरा मन पेठा रे, तुम दरिसण पामी नहीं हरखे, ते निगुणाने धीठ्ठारे . . हुं.. ॥३॥ हुं निर्गुणी ने वळी पापी, लाखेणी तुम सेवा रे, पामी एतो अनुपम भाग्ये, जिम भुख्या वर मेवा रे.. हुं.. ॥४ ॥ भवोभव ताहरी आणा सुरगवी, होजो अविचल भावे रे, तेहथी गौरव समकित सुधु, ज्ञान ने चरणे जमावे रे.. हुं.. ॥ ५ ॥ जेधृत निर्मल आप स्वभावे, रस शोध्यो नवि जावे रे, तिमतुम हेते निज स्वरूपे, ते निर्वाण प्रगटावे रे.. हुं.. ॥ ६ ॥ इन्द्र अनंता जो समकाळे, भक्ति करे तोरी कबही रे, तो पण ते तुम गुण सम नावे, तो हुं दुर्गुणी केही रे.. हुं.. ॥ ७ ॥ प्रभुजीनी गुण स्तुति करवाथी, ज्ञान विमल मति जागी रे, जग चिंतामणी जिम पाम्याथी, भवनी भावठ भांगी रे.. हुं.. ॥ ८ ॥
2089/80/88888888888 1880808888888888
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १३ (राग : शास्त्रीय)
मूरति मोहनगारी, प्रभुजी तेरी, मूरति मोहनगारी पद्मप्रभु जिन तेरे ही आगे, ओर देवन छबी हारी ॥ १ ॥
समता शीतल भरी दोय अखियाँ, कमल पंखरिया वारी, आनन निराका चंदसो राजे, बानी सुधारस सारी ॥ २ ॥
लंछन अंग भयो तन तेरो, सहस अट्ठोतेर धारी, | भीतर गुणका पार न आवे, जे कोउ कहत विचारी ॥३
शशिरवि हरि को गुणलेइ, निरमित गात्र संचारी, वचन बुलंद कहांसे आयो, ये अचरिज मुजभारी ॥ ४ ॥
| यो गुण अनंतभरी छबी प्यारी, परम धरम हितकारी कवि अमृत कहे चित्त अवतारी, बिसरत नाहि बिसारी ॥५॥
MEETTERT10 19T RED
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १४ (राग : प्राचीन)
ERODERED
श्रीवासुपूज्य नरिंदनो जी, नंदन गुणमणी धाम, वासुपूज्य जिन राजीयोजी, अतिशय रत्न निधान, प्रभु चित धरीने अवधारो मुज वात ॥ १ ॥
T
दोष सकल मुज निवारजोजी स्वामी करी सुपसाय, तुम चरणे हुं आवीयोजी, महेर करो महाराज ॥ २ ॥
कुमति कुसंगतिसंग्रहीजी, अविधिने असदाचार, | ते मुजने आवी मल्याजी, अनंत अनंतीवार ॥ ३ ॥
जबमे तुमने निरखीयाजी, तब ते नाठा दूर, Mail पुण्य प्रगटे शुभ दिशाजी, आयो तुम हजुर ॥ ४ ॥
ज्ञानविमल प्रभु जाणजोजी, शुं कहेवू बहुवार, दास आसपूरण करोजी, आपो समकित सार || ५ ॥
BETET
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १५ (राग : तुं प्यार का सागर है)
सुण सुगुण सनेही साहिबा ! त्रिशलानंदन महावीर; शासन नायक जगधणी, शिवदायक गुणगंभीर ॥१॥ तुम सरिखा मुझ शिरछते हवे मोह तणु नहि जोर; रवि उदये कहो किम रहे, अंधकार अति घनघोर ॥ २ ॥ वेष रची बहु नव नवा हुं, नाच्यो विषम संसार; हवे चरण शरण तुझ आवीयो, मुझ भवनी भावठ वार ॥ ३ ॥ हुं निर्गुणो तो पण ताहरो, सेवक छु करूणा निधान; मुज मन मंदिर आवी वसो तो, नासे कर्म निदान ॥ ४ ॥ मनमा विमासो शुं किश्यु, मुज महेर करो जिनराज; सेवकना कष्ट नवि टळे ओ, साहिब ने शिरलाज ॥ ५ ॥ तु अक्षयसुख अनुभवे तो, दिजे मुजने एक; तु भांजे भुख भवोभव तणीवळी, पामु परम विवेक ॥ ६ ॥ शी कहुं मुज मन वातडी, तुमे सर्व विचार ना जाण वाचक यश एम विनवे रे, देजो क्रोड कल्याण ॥ ७ ॥
.
READUR
..
.
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १६ (राग : बहोत प्यार...)
हम मगन भये, प्रभु ध्यानमें....हम...... बिसर गइ दुविधा तन मन की, अचिरा सुत गुणगानमें ।। १ ॥
हरिहर ब्रह्मा पुरंदर की रिद्धी, आवत नहि कोउ मानमें; चिदानंद की मौज मची है, समता रस के पान में ॥ २ ॥
MERENCCC0000000000
इतने दिन तुम नाहि पिछाण्यो, मेरो जन्म गयो सो अंजानमे; अब तो अधिकारी होइ बैठे,प्रभु गुण अक्षय खजानमें ॥ ३ ॥
गइ दीनता अब सब ही हमारी, प्रभु तुज समकित दानमे; प्रभुगुण अनुभव रस के आगे, आवत नही कोउ मानमें ।। ४ ॥
जिनही पाया तिनही छिपाया, न कहे कोउ के कानमें; ताली लागी जब अनुभव की, तब जाने कोउ शानमें ॥ ५ ॥
प्रभु गुण अनुभव ज्यु सो तो न रहे म्यानमें; वाचक जश कहे मोह महा अरी,जीत लीया है मैदानमें..... ॥ ६ ॥
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १७ (राग : आवो आवो देव.....) प्रभुजीनी वाणी जोर रसाल, मनडुं सांभळवा तलसे, सजल जलद जिमगाजती जाणे, वरसे अमृतधार, सांभळता लागे नहीं, खिण भुखने तरस लगार ॥ १ ॥
TERRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR
तिर्यंच मनुष्यने देवता, सह समजे निज निज वाण जोजन क्षेत्रे विस्तरे, नय उपनय रत्ननी खाण ॥ २ ॥
बेसे हरिमृग अकठा ने, उंदर मांझारनां बाळ , मोह्या प्रभुनी वाणीओ, न करे केइने आळ ॥ ३ ॥
सहस वरस जे सांभळे तोय तृप्त थाये न मन, शाताओ सहु जीवने, रोमांचित होवे तन ॥ ४ ॥
वाणी सुविधी जिणंदनी, शिव सुखनी दातार, विमल विजय उवज्झायनो, राम लहे जयकार ।। ५ ॥
RIOR
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
RTER
T MERREDEEPTETTER
स्तवन - १८ (राग ....ओसाथी ..... रे ....) मुज अवगुण मत देखो हो प्रभुजी मुज अवगुण मत देखो, राग दशाथी तुं रहे न्यारो हुं मन रागे वाळु, द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुंचालुं ॥१॥
- मोहलेश फरस्यों नहीं तुजने, मोह लगन मुज प्यारी,
तुं अकलंकीत कलंकीत हुं तो, ओ पण रहेणी न्यारी ॥ २ ॥
al तुंही निराशी भाव पद साधे, हुं आशासंग विलुद्धो
तुं निश्चल हुं चलतुं सुधो, हुं आचरणे उंधो ॥ ३ ॥
तुज स्वभावथी अवळा माहरां, चरित्र सकल जगे जाण्या, अहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्या॥४॥
प्रेमनवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे, कान्ती कहे भवरान उतरता, तो वेळा नवि लागे ॥ ५ ॥
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - १९ (राग: शात्रिय)
MEDICTORREDIEND
मन मोहयुं दिल मोहयुं प्रभु गुण गानमां, प्रभु गुण गानमां, जिन गुण गानमां, काल अनंत न जाण्यो जोता, मोह सुराके पानमां ॥ १ ॥
एकेन्द्रिय बिती चउरेन्द्रियमां, काल गयो अज्ञानमां; हवे कोइक पुण्योदय प्रगट्यो, आवी मिल्यो प्रभु ध्यानमा ।।२।।
ECTETTETTERTEREDTUREDEEMERALDETERMITTER
अंतर भरम गयो सवि दूरे, तत्वसुधारस पानमां, प्रभु तुझ दृष्टि भई मोहे उपरे, अंतर आतम शानमां ॥३॥
दरस सरस देख्यो जिनजी को, लगन लगी तारा ज्ञानमां; केवल कमला कंत कृपानिधी, और न देख्यो जहानमां ॥४॥
अशरण शरण जगत उपकारी, परमातम शुचि पानमां, राम कहे तुझ आणा भवोभव, धारी नय परमाणमां ॥५॥
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
西西路西岛路海西路南岛路图图
स्तवन - २०
(राग : शास्त्रीय)
मेरो मन मोहयो, प्रभु की मूरतिया सुंदर गुण मंदिर छबी देखत, हरखित हुइ मेरी छतियां.... ॥१॥
नयन चकोर वदन शशि सोहे, मत गणुं हुं दिन रतियां.... ॥२॥
प्राण सनेही प्राण प्रियको
लागत है मिठी बतियां.... ॥३॥
अंतरयामी सब जानत हो, क्या लीख के भेजूं पतीयां... ॥४ ॥
कहे जिनहर्ष ऋषभ जिनवर की, भक्ति करू हुं बहु भतियां.... ॥५ ॥
10/08/01 26 18/09/20/201801805
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
南岛岛岛岛岛岛岛岛岛海岛岛岛西南路
स्तवन - २१ ( राग : एक प्यार का ... )
लाग्यो लाग्यो प्रभुशुं नेह, वसीयो मारा हैयामां मारो साहीबो अति ससनेह, वसीयो मारा हैयामां दर्शन प्रभुनु देखतां रे, जोतां प्रभुमुख ज्योत, दूरित पडल दूरे थयो, प्रगट्यो ज्ञान उद्योत ॥ १ ॥
मूरत मुजमनमां वसी, कागळ जिम चित्राम, निशदिन सूतां जागतां, संभारुं हुं तुज नाम ॥ २ ॥
जेना मनमां जे वस्यो, तेहने तेहनुं नाम; मधुकरने जेम मालती, मोर तणे मन मेह ॥ ३ ॥
देव अवर देखी घणा कीहां नविराचे मन; पण गुणें सांकळे सांकळयुं, ओतो आलोचे नहि ॥ ४ ॥
साहिबा सुमति जिणंद नी, चाहुं हुं भवोभव सेव, हंस रतन कहे माहरे, मुजमन लागी टेव ॥ ५ ॥
[
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - २२ (राग - आवाज देके हमे तुम)
प
अजब बनी मेरी अजब बनी रे, प्रभु साथे प्रीती अजब बनी • अजब बनी प्रभु साथे प्रीती, तो मुज दुर्गति शी बीती;
देखी प्रभुनी मोटी रीद्धि, पामी पुरण रीद्धि प्रसिद्धि ॥ १ ॥
जे दुनियामां दुर्लभ नेट, ते में प्रभुनी पामी भेंट; l आळसुने दोरे आवी गंगा, पामीयो पथी सभर तुरंगा ॥ २ ॥
M तिरसे पायो मानस तीर, वाद करंता वादी भीस,
चित्तमांचोड्यो साजननो संग, अणचिंत्यो मल्यो चढते रंग ॥३॥
जिमजिम निरखं प्रभु मुखनुर, तिमतिम पामु आनंद पूर, सुणतां जन मुख प्रभुनी वात, हरखे मारां साते धात ॥ ४ ॥
पद्म प्रभु तणां गुणगान लहीये शिवपदवी असमान, विमल विजय वाचकनो सेवक, रामे पाम्यो परम जगीश ॥५॥
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - २३
(राग : तुं प्रभु मारो) il तारा ते नयना प्याला प्रेमना भर्या छे,
प्रेमना भर्या छे, दया रसना भर्या छे. दयारस ना भर्या छे, अमी छाटना भर्या छे;
तारा ते नयना प्याला प्रेमना भर्या छे ।। १ ॥ जे कोई तारी नजरे चढी आवे,
कारज तेहना सकल सर्या छे ...।। २ ।। प्रगट थई पाताल थी प्रभु ते यादव
ना दुःख दूर ा छे ।।३।। mil पन्नगपति पावक थी उगार्यो जन्म मरण
भय तेहना हर्या छे ।।४।। पतितपावन शरणागत वत्सल दरिसन दीठे
मारा दिलडा ठर्या छे।।५।। श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, तुज पद पंकज
आजथी धर्या छे ॥६॥ mil जे कोई तुजने ध्याने ध्यावे अमृत सुख
तेने रंगथी वर्या छे ।। ७ ॥
Ma
(29
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - २४ पार्श्वजिणंदा मुजने दरिशन द्योने दिलभर दिलथी मारा सामु जुओने, हसी तारा चितनी वातो मने ते कहोने, प्रीत नी रीत मां शुंते वहोने ॥१॥
अंतर चितनी वारतारे, प्रभु कहुं ते दिल धरोने;प्रीत प्रतीत जीम उपजेरे, तिम अविहड प्रीत करोने; पार्थ जिरावला मुजने दरिशन धोने ॥२॥
| सुन्दर मुखडु मटकडे, प्रभु लोभ्या ते अमोने; मुजमन मलवा अति घणुरे, चाहे क्षण क्षण माहीतमोने पार्श्वनाकोडामूजने ॥३॥
ललचावो दिन केटला रे, अम दिलासो मुजने दईने, हा ना मुखथी भाखीये रे, बेसी रहया शुं मौन धरीने, पार्श्व गोडिजी मुजने ॥४॥
हसित वदने बोलावीयेरे, आज अमोने राजी करोने; वाछित देई | अमनेरे, तुमशुंजगमांजश वारोने पार्श्व चिंतामणी मुजने ॥५॥
रोग शोक दुःखने दोहग, ताप संताप ने पाप हरोने; पंडित प्रेमना | भाणनेरे, प्रसन्न होजो हेज धरीने; पार्श्व शामलीया | मुजने ॥६॥
REL30 बाबा
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - २५ (राग अमी भरेली नजरो राखो)
| तारा वयणे मनडु मोहयु गिरुआ गुणना दरिया रे, तारा चरणे चित्तडुभेद्यु, मीठा मीठा ठाकुरीयारेतारा ॥१॥
साकर द्राक्ष थकी पण अधिकी, प्रभुमारा मीठी तुम वाणी; सांभलता सन्तोष न थावे, अमृतरसनी खाणीरे ॥२॥
वयण तुमारे संभालवाने प्रभु आशक थईने रहीये रे मुखडा नो मटकारो जोता, फरी फरी मायणे जईयेरे तारा ॥३॥
图图图图图图图图图图图图图图图图图回国画画图画圈圈
ऋद्धिवंता बहु राज्य तजीने प्रभुजे तुज चरण रसीया, सघली वाततणो रस छंडी, आवी तुम चरणे वसीयारे तारा ॥४॥
सुरनर मुनिजन जगमन भावी, प्रभु हाथे जे गुणखाणी; श्री जिनवर तणी सुणी वाणी, बुझ्झया बहुभविप्राणीरे तारा ॥५॥
| त्रण भुवन ने पावन करवा निर्मल जेह निसरणी, उदयरत्न कहे
भवजल तरवा सहिनावा संवरणीरे ॥६॥
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - २६ (राग : मारी ओक तमन्ना छे)
आज मारा नयना सफल थया श्री सिद्धाचल निरखी गिरीने वधावू मोतिडे मारा हैयामां हरखी ॥१॥
धन्य धन्य सोरठ देशने, ज्यां ओ तीरथ जोडी: विमलाचल गिरनार ने, वंदु बे कर जोडी ॥ २ ॥
साधु अनंता इणगिरी सिध्या अनशन लेई; राम पांडव नारद ऋषि बीजा मुनिवर केई ॥३॥
मानवभव पामी करी नवि ओ तिरथ भेटे; पापकर्म जे आकरां, कहो केणी परे मेटे ॥ ४ ॥
तिरथराज समरूसदा सारे वांछित काज; दुखः दोहग दूरे करे, आपे अविचल राज ॥५॥
सुख अभिलाषी प्राणीया, वंछे अविचल सुखडा | माणेक मुनि गिरिध्यान थी, भांगे भवोभव दुःखडा ॥ ६ ॥
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
स्तवन - २७ (राग चांदि जैसा रंग हे तेरा - गजल) शांति जिणंद प्रभु त्रिभुवन स्वामी शीवगामी यशनामी, जेहने परम प्रभुता पामी, सिद्धिवघू सुखकारी ॥१॥ चोसठ ईन्द्र रह्या करजोडी, पाय नमे मनमोडी अमरी भमरी परे मुखकमले, रास लीये हाथ जोडी ॥२॥
1
भावथी ताल विना प्रभु पासे धपमप मृदंग बजावे, ता ता थै थै नाटक करे, निज लळी लळी | शीशनमावे ॥३॥
समता सुंदरी ना प्रभु भोगी त्रण रत्न मुज आपो; दिनदयाल कृपाकरी तारक जन्म मरण दुःख कापो॥४॥
निर्मोही पण जगजन मोहे, देशना भवि पडिबोहे ; अकल अगम्य अचिन्त्य तुज महिमा, योगीश्वर नवि जोये ॥५॥
शांति जिनेश्वर शांति अनुपम, मोहन कहे मुज आपो; अचिरा नंदन बाह्य ग्रहीने, मने सेवक रूपे स्थापो ॥६॥
33
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
BARBARAMMERA
स्तवन - २८
(राग - शास्त्रीय) तारी अजबसी योगनी मुद्रा रे लागे मुने मिठी रे, ओ तो टाले मोहनी निद्रा रे, प्रत्यक्ष दीठी रे ॥१॥
लोकोत्तर थी जोगनी मुद्रा, अनुपम आसन सोहे; सरस रचित शुक्ल ध्यान नी धारे सुरनर ना मन मोहे रे॥२॥
त्रिगडे रत्नसिंहासन बेसी, व्हाला भाराचिंहु दिशि चामर ढोळावो; अरिहंत पद प्रभुतानो भोगी, तो पण जोगी कहावो ॥३॥
अमृत झरती मिठी तुजवाणी, जेम आषाढोमेघ गाजे; कान मारग थई हैयडे पेसे, संदेह मनना भांजे रे ॥४॥
कोडी गमे उभा दरबारे, जयमंगल सूर बोले; त्रण भुवन नी रिद्धि तुज आगे, दीसे इम तृण तोले रे ॥५॥
भेद लहु नहि जोग जुगतीनो, सुविधी जिणंद बतावो; प्रेम शंकांति कहे करी करूणा, मुज मन मंदिर आवो रे॥६॥
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - २९
(राग : मेरा जिवन...) सकल समता सुरलतानो, तुही अनुपम कंद रे तुही कृपारस कनक कुंभो, तुंही जिणंद मुणींद रे ॥१॥ प्रभु तुंही तुंही तुंही तुंही युंही धरता ध्यान रे, तुज स्वरुपी जे थया तेणे, लीघु ताहरु तान रे ॥२॥ तुंही अलगो भव थकी पण, भविक ताहरे नाम रे, पार भवनो तेह पामे, अही अचरिज ठाम रे ॥ ३ ॥ जन्म पावन आज मारो, निरखीयो तुझ नूर रे, भवोभव अनुमोदना जे, हुओ आप हजुर रे ॥४॥ एक मारो अक्षय आतम, असंख्यात प्रदेश रे, तारा गुणो छे अनंता, केम करु तास निवेश रे ॥५॥ एक एक प्रदेश ताहरे, गुण अनंतनो वास रे, एम कही तुझ सहज मिलत, होय ज्ञान प्रकाश रे ॥ ६ ॥ ध्यान ध्याता ध्येय एकी, भाव होय एम रे एम करता सेव्य सेवक, भाव होय क्षेम रे ॥७॥ एक सेवा ताहरी जो, होय अचल स्वभाव रे
ज्ञानविमल सूरींद प्रभुता, होय सुजस जमाव रे ॥ ८ ॥ लामाल 35
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ३०
(राग : पुजानी ढाळ) तार मुझ तार मुझ....तार त्रिभुवन धणी
पार उतार संसार स्वामी; प्राण तुं त्राण तुं शरण आधार तुं.
आतमाराम मुझ तुही स्वामी ॥१॥ तुंही चिंतामणी तुं ही मुझ सुरतरू, कामघट कामधेनु विधाता; सकल संपत्ति करू, विकट संकट हरु,
पार्थ शंखेश्वरो मुक्तिदाता ॥२॥ पुण्य भरपूर अंकुर मुझ जागीयो, भाग्य सौभाग्य मुख नूर वाध्यो; सकल वंछित फल्यो, माहरो दिन वळ्यो, पार्श्व ।
शंखेश्वरो देव लाघ्यो ॥ ३ ॥ al मूर्ति मनोहारिणी, भवजलधि तारणी, निरखत नयन आनंद हुओ, | पार्श्वप्रभु भेटीया, पातिक मेटिया,
लेटिया ताहरे चरणे जुओ ॥ ४ ॥ पार्श्व मुझ तुंधणी, प्रीती मुझ बनी घणी, विबुधवर नय विजय गुरू वखाणी, मुक्तिपद आपजो, आप पदे स्थापजो जसविजय आपनो भक्ति जाणी ॥५॥
WRITERTRE1836 RRRRRREET
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ३१
(राग : शास्त्रीय) दरिसन की अभिलाष प्रभुजी तेरे दरिशन की अभिलाष सदा लगे मुझ प्यास प्रभुजी तेरे.... तीन भवन मे फीर फीर आया, पुण्ये हवे तेरी पास तुम सरीखा नही देव अनेरा, समजी आq तारी पास; शांत सुधारस भविजन पीके, सफल करे निज आश ॥ २ ॥
गुण गणतां कोई पार न आवे, आतम गुण कहेवाय; अनेक लक्षणे शोभती काया, देखी जगत हरखाय ॥ ३ ॥
मोह सुभट का राजय विखेरी, खुल गया ज्ञान प्रकाश; भव्य मनुष्य को शिवपंथ जोडी, मुक्तिपुरी लीयो वास ॥ ४ ॥
धर्मघोरी जिनराज की भक्ति, आपे अक्षय सुख सार; आळस मुकी जे जिनपद ध्यावे, उतारे भवजल पार ॥५॥
दोष रहित अरिहंत ने जाणी, दिल भरम मिट जाय; प्रेमधरी प्रभु चरण नमीने, मान विजय खुश थाय ॥६॥
-
@@@@@@@@37座图图图图图
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन ३२ (राग : शास्त्रीय)
- - wal
- - - - -
apat
-
all
पद्मप्रभ जिन नामनी रे, जाउ हुं बलिहार... नाम जपंता दीहा गमुं रे, भव भय भंजनहार...
मिले मन भीतर भगवान ॥१॥ नाम जपंता मन उल्लसे रे, लोचन विकसित होय, रोमांचित होवे देहडी रे, जाणे मिलीयो सोय...
मिले मन भीतर भगवान ॥२॥ पंचमकाळे पामवो रे, दुलहो प्रभु देदार तोहे ताहरा नामनो रे, छे मोटो आधार
मिले मन भीतर भगवान ॥३॥ नाम ग्रहे आवी मिले रे, मन भीतर भगवान; मंत्र बळे जिम देवता रे, वाहलो कीधो आहवान्
मिले मन भीतर भगवान ।। ४ ।। ध्यान पदस्थ प्रभावथी रे, चाख्यो अनुभव स्वाद; मान विजय वाचक वदे रे, मुको बीजो वाद...
मिले मन भीतर भगवान ॥५॥
-
immomama
-
MARRIER
38 MITTER
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ३३
(राग : देशी) सेवो रे भवीया, विमल जिनेश्वर, दुलहा सज्जन संगाजी; अहवा प्रभुनू दर्शन लेवू, ते आळसमांहि गंगाजी ॥१॥
अवसर पामी आळस करशे, ते मूर्खमां पहेलोजी; भुख्याने जेम घेबर देतां, हाथ न मांडे घेलोजी ॥२॥
भव अनंतमां दरिसण दिठु, प्रभु अहवा देखाडेजी; विकट ग्रन्थि जे पोले पोलीयो, कर्मवीवर उघाडेजी ॥३॥
तत्व प्रितीकर पाणी पाये, विमला लोके आंजीजी,; लोयण गुरू परमान दियोतब, भ्रम नाखेसविभांजीजी ॥४॥
भ्रम भाग्यो तव प्रभुशुं प्रेमे, वात करू मन खोलीजी;
सरळ तणे हैये जे आवे, तेह जळावे बोलीजी ॥ ५ ॥ o श्री नय विजय विबुध पाय सेवक, वाचकयश कहे साचुंजी; | कोडी कपट जो कोई बतावे, तो प्रभु विना नवी राचुजी ॥६॥ RTERTISTER 39REERRIER
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
{{{{{
स्तवन - ३४ ( राग : प्राचीन)
धर्म जिनेश्वर धर्म धुरंधर, पुरव पुण्ये मलीयो, मनमरूस्थल में सुरतरू फलीयो, आज थकी दिन वळीयो; प्रभुजी महेर करो महाराज, काज हवे मुज सारो, साहब गुण निधि गरिब निवाज, भवजल पार उतारो ॥ १ ॥
बहु गुणवंता जेहते तार्या, तेमां नहीं पाड तुमारो; मुज सरिखा पत्थर ने तारो, तो तुमची बलीहारी ॥ २ ॥
निर्गुण जाणी छेह अम देशो, जो जो आप विचारी; चंद्र कलंकित पण निज शिरथी तजेन गंगाधारी ॥३॥
हुं निर्गुण पण ताहरी संगे, गुण लहु तेह घटमान; निंबादिक पण चंदन संगे चंदन सम लहेतान ॥ ४ ॥
सुव्रतानंदन सुव्रतदायक, धारक जिन पदवीनो; पायक जास सुरासुर किन्नर, घायक मोह रिपुनो ॥ ५॥
तारक तुम सम अवरन दीठो, लायक नाथ हमारो; श्री गुरू क्षमा विजय पाय सेवी कहेजिन भवजल तारो ॥ ६ ॥
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
स्तवन - ३५
(राग - शास्त्रीय) में किनो नहीं तुमबिन ओर शुंराग, दिनदिन वान चढत गुणतेरो, ज्युकंचन परभाग, औरन में कषाय की कालीमा, सो क्यु सेवा लाग ॥१॥
राजहंस तुं मान सरोवर, और अशुची रूची काग; विषय भुजंगम गरूड तुंकहीये, और विषय विषनाग ॥२॥
और देवजल छिल्लर सरीखे, तुं तो समुद्र अथाग; तुं सुर तरू जन वंछीत पूरण, और ते सुके साग ॥ ३ ॥
-
तुं पुरूषोत्तम तुंही निरंजन, तुं शंकर वडभाग; तुं ब्रह्मा तुं बुद्ध महाबल, तुंही ज देव वितराग ॥ ४ ॥
oil सुविधी नाथ तुम गुण फुलनको, मेरो दिल है बाग;
जस कहे भ्रमर रसीक थई तामे, लीजे भक्ति पराग ॥५॥
WITTERT
41
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्तवन - ३६
(राग : बेनारे...) जिनेश्वर पूरजो मारी आशा हो जिम पामुं शिवपुर वास, धर्म जिनेश्वर ध्याइएरे, गुणगाऊ गीरूआ तणा रे,वाधे बमणो नेह | ....... धर्म जिनेश्वर ध्याइये रे.... ॥१॥
काल अनादि निगोदमां रे, भमीयो अनंतीवार, Ma कर्म नहोरे रोलव्यो रे सेव्या पाप अढार ॥ २ ॥ | प्राणातीपात मृषा घणुं रे, त्रीजु अदत्तादान; विषयरसमां रसीयो रे, कीधु बहुं दुर्ध्यान ॥ ३ ॥ नवनिधः परिग्रह मेळव्यो रे, किधो क्रोध अपार; मानमाया लोभे करीने, न लह्यो तत्व विचार ॥ ४ ॥ | रागद्वेष कलह कर्या रे, दिधा परने आळ; पैशुन्य रति अरति वळी रे, सेव्या दुःख असराल ॥५॥ दोष दीधा गुणवंतनेरे, किधो माया मोष; मिथ्यात्व शल्य दोषे करी रे, किधो अविरती पोष ॥ ६ ॥ पाप स्थानक सेवी जीवडो रे, रूल्यो चऊगतिमोझार रे; जन्म मरणादी वेदना रे, सही अनंती वार ॥७॥ अह विडंबना आकरी रे, जाणो श्री जिनराय; बाह्य ग्रहीने तारजो रे, सारो सेवक काज ॥८॥ धर्म जिणंदनी स्तवना थकी रे, पहोती मननी आश; जिन उत्तम पद सेवना रे, रतन लहे शिववास ॥९॥
जिनेश्वर ........
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
华路 囧囧囧囧西安西路图
स्तवन ३९
(राग: है मालिक तेरे बंदे हम)
श्री शांति जिनेश्वर दीठा मारा मनमां लाग्या मीठा;
आज मुखडुं प्रभुजी तारु जोतां, मारा नयन थया छे पनोता.. १ जे नजर मांडी ओने जोशे, ते तो भवनी भावठ खोशे;
अहनुं रुप जोइ जे जाणे अने, सुरनर सहु वखाणे....२ ओ साहिब छे सयाणो, मने लाग्यो अहशुं तानो;
* ओ तो शिवसुंदरीनो रसियो, मारा नयनो मांही वसीयो....३ तो पण अशुं की, हवे सघळु कारज सीध्युं; ओ तो जीवन अंतरयामी, निरंजन से बहु नामी घणु शुं हने वखाणुं, अ तो जीवनो जीवन जाणुं; घणु जे अहने मळशे ते तो, माणसमांथी टळशे....५ मनडां जेणे अशुं मांड्या, तेणे ऋध्धिवंता घर छांड्या; आगे जेणे अह उपास्यो तेणे, शिवसुख करतल वास्यो....६ आशक जे अहना थाय, तेणे संसारमां न रहेवाय; गुण अहना जे घणा गाशे ते तो, आखर गुणी थाशे..... तो मांडी अशुं माया, मने न गमे बीजानी छाया; उदयरत्न मुनि ओम बोले, कोई नावे अहनी तोले...८
·
湖南离岛廟廟 C+ 圈圈圈圈圈圈圈圈圈
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
स्तवन-३८
(राग : बेना रे...) ___ मुनिसुव्रत मन मोह्यु मारु शरण हवे छे तमारु; प्रात:समय हुं ज्यारे जागु, स्मरण करु छु तमारु... हो जिनजी तुज मूरति मनोहरणी, हो जिनजी भवसागर जलतरणी...१ आप भरोसो छ, तारो तो घणुं सारु
जन्म जरा मरणे करी थाक्यो, आशरो लीधो मे तारो...॥१॥ की चुं चुं चुं चुं चिडीया बोले, भजन करे छे तमारु;
मूर्ख मनुष्य प्रमादे पड्यो रहे, नाम जपे नही ताहरु...॥२॥ भेळा थतां बहुशोर हु सुगुं, कोइ हसे कोइ रुवे न्यारु; सुखीयो सुवे दुःखीयो रुवे, अकळ गति ओ विचारु...॥३॥ खेल खलक नो बंध नरकनो, कुटुंब कबीलो हुं जाणुं; ज्यां सुधी स्वारथ ज्यां सुधी सर्वे, अंतसमय रहे न्यारं...॥४॥ माया जाळ तणी जोई जाळी, जगत लागे छे खाएं उदयरतन प्रभु अम कहे छे, शरण ग्रहुं में साचु...॥५॥
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
pacaraPATRA
HTTERTARATH
गीत - १ स्वामी तारा स्नेहनो मने धरब नथी, प्यास छीपती नथी थाय छे के बस घुट पीधा करूं...
स्नेह तो मळ्यो मने घणानो पण बधा शरीर ना सगानो, आतमनो एक तु स्वजन छे, तारो मारो स्नेह छे सदानो भाव जेमा स्वार्थ नो लगीर पण नथी, एवा आ संबंध थी थाय छे के बस गांठ बांध्या करूं....
國图图图图图图南画面图图图图图图图图图图图图回
सूर्यना किरण वधे घटे छे, मेघराय पण कदि रुठे छे, धान्य आपनारी धरती माता, कोक दिन धान्य चोरी ले छे, रातदिन वहे तारा स्नेहनी नदी, ओटती नथी कदी, थाय छे के बस डूबकी मार्या करूं....
तारो स्नेह पाप थी बचावे, धर्मनी प्रवृत्तिओ करावे, द्वार दुर्गतिना बंध करीने, सद्गति तणी सफर करावे, दीप जले छे मुजने मार्ग चींधवा, मंजिले लइ जवा, थाय छे के बस तेज झील्या करूं....स्वामी...
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत - २
डगले डगले दंभ करूं, मने दुनिया माने धर्मात्मा, पण शुं शुभर्यु मारा मनडामां; एक वार जुओने परमात्मा...(२)
अरे ओ...रे...अरे ओ...रे.... हुं स्वांग धरूं छु सेवकनो, पण सेवा करतां शरमाउं, सन्मान मळे जे फोगट मां, लेवामां ना हुं अचकाउं...(२)
हुँ ढोंग करुं छु धर्मीनो, पण धर्म वस्यो ना हैयामां, बेहाल भले फरती दुनिया, मारे सुq सुखनी शैयामा...(२)
हुं दान दउ छु दौलत मुं, ए दौलत क्याथी लाईं छु, लाचार जनोने लूटुं छु, तो ये दाता कहेवाउं छु...(२) हु वेशलउं वैरागीनो, ने वंदन सहुना पामुं छु, पंचरंगी पीछा ओढीने, हुं साची जात छुपाईं छु...(२)
M
ARRRRIED 4G
TERISTRI
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
□□□□國·商圈圈圈圈圈海商圈圈圈國
गीत - ३
अंतरनी आरझू मारी, स्वीकार करी ल्यो संसारना सागर थी नैया पार करी ध्यो... (२) हो जीवन स्वामी हो अंतरयामी... (२)
चारे तरफ फेलाय छे, जीवनमां निराशा, हैये रमे छे एक बस तुज प्यार नी आशा; मूरजायेला जीवनमां, शणगार सजी द्यो...
तारी अने मारी वच्चे छे केटली दूरी, जंजीर आ कर्मोतणी मारी छे मजबूरी, भूली जई भूलो मारी, प्रभु माफ करी द्यो....
आवी रही छे जिंदगीमां पापनी आंधी जोजेना तूटे प्रेमनी में दोर जे बांधी, मनडाना शमणा मारा, साकार करी द्यो....
□□□□ 网路圈 路路网路路网路
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
商圈圈密商圈商圈
गीत - ४
Face
आ देह नी पूजामां, दिनरात हुं वितावुं छु, किंमती समय जीवननो, हुं राखमां मिलावुं छु...
शियाळे शाल ओढाडुं, उनाळे बाग सुंघाडु; मिठाई खुब खवडावं, पलंगे रोज पोढाडु; अंकुश नी जरुर छे, त्यां लाड हुं लडावुं छं... मने आ देह उध्धारे, नरक मां एज गबडावे; दमुं तो पार उतरावे, नमुं तो पाप बंधावे; साधन तरी जवानुं, कांठा उपर डूबावुं छे... अचानक देह पडवानो, फरी आतम रझळवानो; फरी संयोग मळवानो, नथी एने उगारवानों; अधूरा रहे अभरखा, एवा कदम उठावुं छु... आ देह नी....
离网网路路网88 87 西湖路商圈圈圈网网
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
悦悦悦[88] गीत - ५
सेवा ओ मुक्ति मेवा... सेवा....
हो... मारा हैयानी सेवा स्वीकारो प्रभु मने मुक्ति ना मेवा चखाडो प्रभु...
आपुं जन्मोजन्मनी परीक्षा, हवे परिणामनी छे प्रतिक्षा
मारा जन्मोनो अंत, क्यारे आवे भगवंत मारा मनडानी चिंता मटाडो प्रभु...
में तो राखी नथी कोई खामी, तोये रीझ्यो नहि केम स्वामी ?
मारो शुं छे अपराध, गोतुं हुं दिनरात; मारी भक्ति नी खामी सुधाारो प्रभु...
aist भवनो घणोमें उपाड्यो लांबो मार्ग प्रभु में खुटाड्यो, हवे लाग्यो छे थाक, जरा लंबावो हाथ मारा माथेथी बोजो उतारो प्रभु...!
सेवा....
8888888 49
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
{{{{{{{
गीत - ६
हैयानी नैयामां आवो ने... हैयानी नैयामां आवो खेवैया (२)
तरावो ने भवनो सागर अमे तारा छैया...
है सितारी ने प्रभु तमे सरगम, सुर रेलवे एना अर्हम् अर्हम्, मुक्तिनीलयना तमे बजवैया... तरावो...
है आ चातक छे तमे मेघधारा भवोभवनी प्यास ना छो तमे बूजवनारा, अमे जो बाळ तो, तुम अम मैया... तरावो...
अषाढी मेहुला प्रभुजी तमे जो, मनडा नो मोरलो टहुका करे तो, तारे मंदिरिये नाचुं ता थैया... तरावो...
हैया तिजोरीमां तमे छो रुपैया
हैया खजानामां, तमे छो सोनैया
आतम मंदिरना तमे घडवैया.....तरावो....
圈圈圈圈圈圈西西路 50】圈øoooooo圖
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत -५ रोज एवो मनोरथ करे आतमा, के तमारा रटणमां बनुं हुं मगन; ए स्थिति ! स्वामी क्यारे मने सांपडे, के हृदय ने नचावे तमारी लगन.... एम तो रोज मंदिरे आईं प्रभु, बे घडी भक्ति मां हुं विताईं प्रभु, क्रम प्रमाणे क्रियाओ पतातुं प्रभु एक दिन पण शुं एवो न आवे प्रभु ....हो.... के समय ने भुलावे तमारुं भजन...रोज..... एम तो फेरवु रोज माळा प्रभु, जेटला गोठव्यां एमां पारा प्रभु, . एटला नाम लउं हुं तमारा प्रभु, अध वचाळे शुं थंभे नहि आंगळा... हो... ने रहे चालु दिलमां तमारुं स्मरण... रोज... एम तो रोज गुणगान गाउं प्रभु, जोर जे कंठमां हुं धरावें प्रभु, एटला जोर थी हुं गजावू प्रभु, मौन थइ ने कदि शुं हृदयना करे...हो... बस घडीभर तमारा गुणोनु मनन...रोज...
-
-
-
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत -८ म में तो जो लीधा दादा तने आज
हैयुं मारुं नाची रघु... मारी धन्य बनी आंखलडी आज हैयु मारु नाची रघु... . .
BRTERRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRISHTET
दादा तारुं मुखडु लागे सोहामणुं जोतां मारुं आ हैयुं हरखाj जाणे लागे पुनम केरो चांद...
शान्त सुधारस दादा तारी मूर्ति पापी जीवोना पापो ने हरती, एतो देखाडे मुक्तिनुं धाम...
/REETTER
माणेक मोती नी आंगी शोभे छे, तारुं मुख जोतां नयनो ठरे छे, . केवो शोभे छे तारो देदार...
भवो भव मांगु तुम चरणोंनी सेवा, जल्दी चखाडजो मुक्तिना मेवा, थाये मारो आ भवथी उध्धार...!
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत -९
वरसे भले वादळीने वायु भले वाय, दादा तारो दिवडो कदि ना बूझाय...
आवे भलेने आंधी तोफानो,
पर्वत शीलाओ गबडी जाय...
आवे भलेने राहु ने केतु,
एनो प्रभाव पण पाणी पाणी थाय...
एने बुझववा आवे असुरो,
ए पण हारी ने चाल्या जाय...
दरियामां उछळे मोजा तोफानी,
भलेने झंझावात झींकाय...
अलबेला आदिनाथ सामे बिराजे,
दर्शन करवा सहु दोडी दोडी जाय...! REMIER 53RRRRRRIERTETTE
Onl.. HOOTA
atalalalpur Hariparaamaajtharior
DOIDOL
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत - १०
प्रभु तारे मंदिरिये आवीया अमे तरवाने, प्रभु तारो छे आधार, पार उतरवाने...
प्रभु ! दूर दूरथी अमे आवीया तने कहेवाने, हवे मूकशुं ना तुज साथ, साथे रहेवाने...
प्रभु दरिसन देजो प्रेमथी, सुख देवाने, अमे आव्या तमारी पास, आशिष
लेवाने..
प्रभु भक्ति ना फूलडा लावीया तने धरवाने, स्वीकारो मारा नाथ, पावन करवाने...!
M
ERRIEEE 54 TERREETE
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत - ११
नानकडी झुपडी ने नानकडं हैयुं
आंगणीये आवो पारसनाथ मारे घेर आवो पधारो...
स्नेह हृदयना मंदिरे पधारो, .
विरहनी वेदना आवी निहाळो, वाटलडी जोवू दिनानाथ...
图图画圈圈
R
व्हाला पारसनाथ क्यारे पधारशो?
आवी सेवकने क्यारे उध्धारशो? तुं मुज जीवन संगाथ...
RRRRRRRRRRRRRRRIME
अंतरने बारणे तोरण बंधावं,
मोतीना साथिया आंगणे पूरा,, दीवडा प्रगटाईं आज...
निशदिन भावथी तारा गुण गावं, ..
हैयामां भक्तिनी उर्मीओ जगावं,
___दर्शन द्यो पारसनाथ...! FREERS5ER
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत - १२
हे नाथ...पारसनाथ...(२)
तुं मुज अंतरनाथ...(२) तुं अंतरयामी, जीवन स्वामी;
तारा चरणे मुक्ति नुं धाम... तुं छे नैया, तुज खेवैया;
कर तुंआ भव थी पार... तुं छे माता, तुज पिता छे; .
तुं जग तारणहार.... • तुं जनरंजन, तुं भवभंजन;
तुं जग पालनहार.... .. तुं सुखदाता तुं ही विधाता,
तुं जीवन आधार...!
PAK:..९.sardPA
MAawahamamalmake
56 FREE THEATRaar
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
□路商圈圈圈圈岛路路面
गीत - १३. (राग: झिलमिल सितारों....)
हरदम तमारा हुं गुण गाउं, कीर्तन करूं ने पावन थाउं... भक्ति केरा रंगे स्वामी हुं रे रंगाउ...
68888
आंख ज्यां मींचु त्यां स्वामी तमने निहाळु छु, रुडु रुडु रुप तमारुं, निरखीने हरखाउं छु, दर्शन थतां तो हुं रे अंजाउं...
कानमां गुंजे छे स्वामी, बोल तमारा उपकारी, सुना सुना जीवनमां जागे मीठी झंकारी, चिंतननी धारामां हुं रे भींजावं...
श्वास ज्यां लउं त्यां स्वामी, तमे हृदय मां आवो छो, बूरी बूरी वासनाओ, त्यांथी दूर करावो छो, अर्पण तमोने हुं थई जाउं... कीर्तन...
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
Santaminamar-
गीत - १४
- तुज नाम लेवु मुजने जीनेश गमे छे,
हैये रमे छे तुं मारा हैये रमे छे
andiroannadaanawani
स्वामी सिध्धाचलना...शीष तुजने नमे छे, हैये रमे छे तुं मारा हैये रमे छे.....
शत्रुजयनो महिमा छे न्यारो, उंचा डुंगरीये दरबार तारो, लाखो यात्रिक आवे, गुणला तारा गावे, तारा दर्शनथी मारा दुःख टळे छे, हैये रमे छे...
wal मुगट शिरे ने काने कुंडल सोहे मुखडानु तेज जोइ देव बधा मोहे
आंखे अमी झरे, जोता नयन ठरे बीजे त्रीजे ना पछी मनडुंभमे छे, हैये रमे छे...
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत - १५
आवी उभो छु द्वारे, प्रभु दर्श देशो क्यारे ? अंतरनी अभिलाषा, प्रभु पूरी करशो क्यारे ?
आवी उभो...
सळगी रह्यो छु आजे, संसार केरा तापे शीतळ तमारी छाया, प्रभु मुजने धरशो क्यारे ?
आवी उभो...
भक्ति करीन भावे, शक्ति वृथा गुमावी, युक्तिना कोई फावी, प्रभु संकट हरशो क्यारे ?
आवी उभो...
द्रष्टिना दूर पहोंचे, सृष्टि आ शून्य भासे; अंधार घेर्या उरने, प्रभु उज्वल करशो क्यारे ?
आवी उभो...
भवोभव भमी भमीने, आव्यो तमारे शरणे; सुनां सुनां जीवनमां, प्रभु आवी मळशो क्यारे ?
आवी उभो...
-
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
गीत - १६
(रागः एक तेरा साथ....) एक तारुं नाम मुजने प्राणथीये प्यारं लागे एक तारुं नाम...एक तारुं नाम मुजने प्राणथीये प्यारं . लागे, जगमा ए निराळु छे एक तारुं नाम... महिमा छे तारो जगमां घणो न्यारो, दुनियानो तुज सहारो, .. विघ्न विदारो, मनवांछितने पूरो, दुःखडा दूर करो...एक भरोसो मुजने, प्रभु एक छे तारो, जगनो तुं रखवाळो; जन्मो जनम तारी दादा प्रीत छे मारी, लेजो मुजने उगारी...एक... लगनी लागी दिलमा, तारा नामनी दादा, करुं हुं कालावाला; तुं मारो स्वामी, विनवू अंतरयामी तारो दीन दयाला...एक...
EDEOBB115389818MEA+BABBREVEREDEEBERRIERHEATERESTERESTERTERTERTERTER
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
pron
-
-
गीत - १७
(राग: अमे महियारा....) तमे रे सहारा रे मंगलधामनां, हे जी मारे शरणां लेवा तमारा... कृपाळु देव मारी वासना निवारो, भूला पडेलानो पंथ अजवाळो, हे जी मारे दुःखडा कोने जइ कहेवा... भवना बजारे हुं तो सुख लेवा निसर्यो, सुखना भंडार तारा साव हुं तो विसर्यो, हे जी मारे कर्मोनां त्रास शे सहेवा... स्वार्थना सगपण कीधा संसारमां, तूट्या ते तंतूनां तार पलवारमा, हे जी मारे प्रीतिनां दान कोने करवा... .. भक्ति नां दीपथी उतारुतारी आरती, मांगु छु एटलुं सुधारजो रे मति, हे जी मारे मुक्तिनी वाटे जावू...
画画图画圈圈部商圈圈画廊画画廊画画廊密密爾
MUMDEMANEEDLINE
...
भR
क.
VIHA
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
प. पू. आ. श्री वि. सुरेन्द्रसूरीश्वरजी
म. सा.
प. पू. आ. श्री वि. यशोभद्रसूरीश्वरजी
म. सा.
प. पू. आ. श्री वि. विमलरत्नसूरीश्वरजी
म. सा.
a
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________ श्रीमती मदन ई माणिकचंद धारीवाल के आर श्रेयार्थे आलाजि उपधान तप उपासना को स्मृति में EVANART 1 लाभार्थी उद्योगपति श्रीमान शेठ श्री रसीकलाल माणिकचंद धाटीवाल परिवार, पूना. भक्ति कर से ऐसीक भक्ति कर से ऐसी तुंक्या प्रभुको गिने जावे, 'तुंक्या प्रभुको निने जावे Print : Deepa समा