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स्तवन-३ (राग - देशी...)
तुम दरिसन भले पायो प्रथमजिन तुम दरिसन... नाभिनरेसर नंदन निरूपम, माता मरूदेवी जायो..॥१॥
आज अमीरस जलधर वुठो, मानु गंगा जळे न्हायो; सुरतरू सुरमणि प्रमुख अनुपम, ते सवि आज में पायो..॥२॥
युगला धर्म निवारण तारण, जगजस मंडप छायो; प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंत्तर वैरी हरायो..॥३॥
कुदेव कुगुरू कुधर्म निवासे, मिथ्यामत में फसायों; में प्रभु आज से निश्चय किनो, सवि मिथ्यात्त्व मायो..॥ ४ ॥
बेरबेर प्रभु विनंती इतनी, तुम सेवा रस पायो ज्ञानविमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो... ॥ ५ ॥