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स्तवन -५ (राग : शास्त्रीय)
आनंद की घडी आई, सखिरी आज आनंद की घडी आई, करके कृपा प्रभु दरिसन दिनो भव की पीड मीटाई; मोह निद्रासे जागृत करके, सत्य की बात सुनाई;
तनमन हर्ष न माई ॥ १ ॥ नित्या नित्य का तोड बताकर, मिथ्या दृष्टी हराई; सम्यग्ज्ञान की दिव्य प्रभाको, अंतर मे प्रगटाई;
साध्य साधन दिखलाइ ॥ २ ॥ त्याग वैराग्य संयम के योग से, निस्पृह भाव जगाई सर्व संग परित्याग कराकर, अलख धुन मचाई
अपगत दुःख कहलाई ॥ ३ ॥ अपूर्वकरण गुण स्थानक सुखकर, श्रेणी क्षपक मंडवाई वेदतीनोंका छेद कराकर, क्षीण मोही बनवाई
जीवन मुक्ति दिलाई ॥ ४ ॥ भक्त वत्सल प्रभु करूणा सागर, चरण शरण सुखदाई; जस कहे ध्यान प्रभु को ध्यावत, अजर अमर पदपाई;
जन्म मरण मिटजाई ॥५॥