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स्तवन - २२ (राग - आवाज देके हमे तुम)
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अजब बनी मेरी अजब बनी रे, प्रभु साथे प्रीती अजब बनी • अजब बनी प्रभु साथे प्रीती, तो मुज दुर्गति शी बीती;
देखी प्रभुनी मोटी रीद्धि, पामी पुरण रीद्धि प्रसिद्धि ॥ १ ॥
जे दुनियामां दुर्लभ नेट, ते में प्रभुनी पामी भेंट; l आळसुने दोरे आवी गंगा, पामीयो पथी सभर तुरंगा ॥ २ ॥
M तिरसे पायो मानस तीर, वाद करंता वादी भीस,
चित्तमांचोड्यो साजननो संग, अणचिंत्यो मल्यो चढते रंग ॥३॥
जिमजिम निरखं प्रभु मुखनुर, तिमतिम पामु आनंद पूर, सुणतां जन मुख प्रभुनी वात, हरखे मारां साते धात ॥ ४ ॥
पद्म प्रभु तणां गुणगान लहीये शिवपदवी असमान, विमल विजय वाचकनो सेवक, रामे पाम्यो परम जगीश ॥५॥