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भक्ति माधुर्य मुक्ति थी अधिक तुज भक्ति मुजमनवसी....
मानव जीवन की सफलतां संसार सागर से पार उतर कर आत्म | स्वरुप की प्राप्ति करने में है । संसार सागर से पार उतरने के लिए एवं
आत्म स्वरुप अर्थात की परमात्म स्वरुप पाने के लिए जैन शासन में असंख्य योग बताये है, ईस असंख्य योग में सबसे श्रेष्ठ-प्रेष्ठ और जेष्ठ | योग भक्ति योग है । महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजाने | भी इस बात की पुष्टि हेतु कहा कि, श्रुत सागर का मन्थन करते हुए - परम आनंद की संपदा को देने वाली प्रभु की भागवत भक्ति ही प्राप्त l हुई है । भक्ति की नैया का सहारा लेनवाला संसार सागर की गहराई
को भी पार कर लेता है । किसी शायरने कहा है, "भक्ति कर तो ऐसी जोप्रभुकों रिझावे, तुं क्या प्रभुको मिलने जावे । प्रभु खुद तुझे मिलने को आवे।
नरसिंह मेहता, मीराबाई, तानसेन, कृष्ण महाराजा, श्रेणीक महाराजा, सुलसा श्राविका जैसे भक्तों ने प्रभु भक्ति के द्वारा ही अपने जिवन की सफलता पायी थी । आज भी भक्ति का चमत्कार नजर दिखाई देता है, ऐसी भक्ति में तल्लीन बनने के लिए प्राचीन-अर्वाचीन प्राचीन - अर्वाचीन स्तवनों का संग्रह इस | पुस्तकमें किया गया है।
मातुश्री मदनबाई माणिकचंद धारीवाल के आत्मश्रेयार्थे उद्योगपति रसीकलाल माणिकचंद धारीवाल पूना, घोडनदी के Mail संपूर्ण सहयोग से