Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

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Page 45
________________ {{{{{ स्तवन - ३४ ( राग : प्राचीन) धर्म जिनेश्वर धर्म धुरंधर, पुरव पुण्ये मलीयो, मनमरूस्थल में सुरतरू फलीयो, आज थकी दिन वळीयो; प्रभुजी महेर करो महाराज, काज हवे मुज सारो, साहब गुण निधि गरिब निवाज, भवजल पार उतारो ॥ १ ॥ बहु गुणवंता जेहते तार्या, तेमां नहीं पाड तुमारो; मुज सरिखा पत्थर ने तारो, तो तुमची बलीहारी ॥ २ ॥ निर्गुण जाणी छेह अम देशो, जो जो आप विचारी; चंद्र कलंकित पण निज शिरथी तजेन गंगाधारी ॥३॥ हुं निर्गुण पण ताहरी संगे, गुण लहु तेह घटमान; निंबादिक पण चंदन संगे चंदन सम लहेतान ॥ ४ ॥ सुव्रतानंदन सुव्रतदायक, धारक जिन पदवीनो; पायक जास सुरासुर किन्नर, घायक मोह रिपुनो ॥ ५॥ तारक तुम सम अवरन दीठो, लायक नाथ हमारो; श्री गुरू क्षमा विजय पाय सेवी कहेजिन भवजल तारो ॥ ६ ॥

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