Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
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स्तवन-३८
(राग : बेना रे...) ___ मुनिसुव्रत मन मोह्यु मारु शरण हवे छे तमारु; प्रात:समय हुं ज्यारे जागु, स्मरण करु छु तमारु... हो जिनजी तुज मूरति मनोहरणी, हो जिनजी भवसागर जलतरणी...१ आप भरोसो छ, तारो तो घणुं सारु
जन्म जरा मरणे करी थाक्यो, आशरो लीधो मे तारो...॥१॥ की चुं चुं चुं चुं चिडीया बोले, भजन करे छे तमारु;
मूर्ख मनुष्य प्रमादे पड्यो रहे, नाम जपे नही ताहरु...॥२॥ भेळा थतां बहुशोर हु सुगुं, कोइ हसे कोइ रुवे न्यारु; सुखीयो सुवे दुःखीयो रुवे, अकळ गति ओ विचारु...॥३॥ खेल खलक नो बंध नरकनो, कुटुंब कबीलो हुं जाणुं; ज्यां सुधी स्वारथ ज्यां सुधी सर्वे, अंतसमय रहे न्यारं...॥४॥ माया जाळ तणी जोई जाळी, जगत लागे छे खाएं उदयरतन प्रभु अम कहे छे, शरण ग्रहुं में साचु...॥५॥
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