Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
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南岛岛岛岛岛岛岛岛岛海岛岛岛西南路
स्तवन - २१ ( राग : एक प्यार का ... )
लाग्यो लाग्यो प्रभुशुं नेह, वसीयो मारा हैयामां मारो साहीबो अति ससनेह, वसीयो मारा हैयामां दर्शन प्रभुनु देखतां रे, जोतां प्रभुमुख ज्योत, दूरित पडल दूरे थयो, प्रगट्यो ज्ञान उद्योत ॥ १ ॥
मूरत मुजमनमां वसी, कागळ जिम चित्राम, निशदिन सूतां जागतां, संभारुं हुं तुज नाम ॥ २ ॥
जेना मनमां जे वस्यो, तेहने तेहनुं नाम; मधुकरने जेम मालती, मोर तणे मन मेह ॥ ३ ॥
देव अवर देखी घणा कीहां नविराचे मन; पण गुणें सांकळे सांकळयुं, ओतो आलोचे नहि ॥ ४ ॥
साहिबा सुमति जिणंद नी, चाहुं हुं भवोभव सेव, हंस रतन कहे माहरे, मुजमन लागी टेव ॥ ५ ॥
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