Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

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Page 36
________________ स्तवन - २५ (राग अमी भरेली नजरो राखो) | तारा वयणे मनडु मोहयु गिरुआ गुणना दरिया रे, तारा चरणे चित्तडुभेद्यु, मीठा मीठा ठाकुरीयारेतारा ॥१॥ साकर द्राक्ष थकी पण अधिकी, प्रभुमारा मीठी तुम वाणी; सांभलता सन्तोष न थावे, अमृतरसनी खाणीरे ॥२॥ वयण तुमारे संभालवाने प्रभु आशक थईने रहीये रे मुखडा नो मटकारो जोता, फरी फरी मायणे जईयेरे तारा ॥३॥ 图图图图图图图图图图图图图图图图图回国画画图画圈圈 ऋद्धिवंता बहु राज्य तजीने प्रभुजे तुज चरण रसीया, सघली वाततणो रस छंडी, आवी तुम चरणे वसीयारे तारा ॥४॥ सुरनर मुनिजन जगमन भावी, प्रभु हाथे जे गुणखाणी; श्री जिनवर तणी सुणी वाणी, बुझ्झया बहुभविप्राणीरे तारा ॥५॥ | त्रण भुवन ने पावन करवा निर्मल जेह निसरणी, उदयरत्न कहे भवजल तरवा सहिनावा संवरणीरे ॥६॥

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