Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
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स्तवन - १९ (राग: शात्रिय)
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मन मोहयुं दिल मोहयुं प्रभु गुण गानमां, प्रभु गुण गानमां, जिन गुण गानमां, काल अनंत न जाण्यो जोता, मोह सुराके पानमां ॥ १ ॥
एकेन्द्रिय बिती चउरेन्द्रियमां, काल गयो अज्ञानमां; हवे कोइक पुण्योदय प्रगट्यो, आवी मिल्यो प्रभु ध्यानमा ।।२।।
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अंतर भरम गयो सवि दूरे, तत्वसुधारस पानमां, प्रभु तुझ दृष्टि भई मोहे उपरे, अंतर आतम शानमां ॥३॥
दरस सरस देख्यो जिनजी को, लगन लगी तारा ज्ञानमां; केवल कमला कंत कृपानिधी, और न देख्यो जहानमां ॥४॥
अशरण शरण जगत उपकारी, परमातम शुचि पानमां, राम कहे तुझ आणा भवोभव, धारी नय परमाणमां ॥५॥