Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
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स्तवन - १७ (राग : आवो आवो देव.....) प्रभुजीनी वाणी जोर रसाल, मनडुं सांभळवा तलसे, सजल जलद जिमगाजती जाणे, वरसे अमृतधार, सांभळता लागे नहीं, खिण भुखने तरस लगार ॥ १ ॥
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तिर्यंच मनुष्यने देवता, सह समजे निज निज वाण जोजन क्षेत्रे विस्तरे, नय उपनय रत्ननी खाण ॥ २ ॥
बेसे हरिमृग अकठा ने, उंदर मांझारनां बाळ , मोह्या प्रभुनी वाणीओ, न करे केइने आळ ॥ ३ ॥
सहस वरस जे सांभळे तोय तृप्त थाये न मन, शाताओ सहु जीवने, रोमांचित होवे तन ॥ ४ ॥
वाणी सुविधी जिणंदनी, शिव सुखनी दातार, विमल विजय उवज्झायनो, राम लहे जयकार ।। ५ ॥
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