Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

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Page 27
________________ स्तवन - १६ (राग : बहोत प्यार...) हम मगन भये, प्रभु ध्यानमें....हम...... बिसर गइ दुविधा तन मन की, अचिरा सुत गुणगानमें ।। १ ॥ हरिहर ब्रह्मा पुरंदर की रिद्धी, आवत नहि कोउ मानमें; चिदानंद की मौज मची है, समता रस के पान में ॥ २ ॥ MERENCCC0000000000 इतने दिन तुम नाहि पिछाण्यो, मेरो जन्म गयो सो अंजानमे; अब तो अधिकारी होइ बैठे,प्रभु गुण अक्षय खजानमें ॥ ३ ॥ गइ दीनता अब सब ही हमारी, प्रभु तुज समकित दानमे; प्रभुगुण अनुभव रस के आगे, आवत नही कोउ मानमें ।। ४ ॥ जिनही पाया तिनही छिपाया, न कहे कोउ के कानमें; ताली लागी जब अनुभव की, तब जाने कोउ शानमें ॥ ५ ॥ प्रभु गुण अनुभव ज्यु सो तो न रहे म्यानमें; वाचक जश कहे मोह महा अरी,जीत लीया है मैदानमें..... ॥ ६ ॥

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