Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust
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स्तवन - १८ (राग ....ओसाथी ..... रे ....) मुज अवगुण मत देखो हो प्रभुजी मुज अवगुण मत देखो, राग दशाथी तुं रहे न्यारो हुं मन रागे वाळु, द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुंचालुं ॥१॥
- मोहलेश फरस्यों नहीं तुजने, मोह लगन मुज प्यारी,
तुं अकलंकीत कलंकीत हुं तो, ओ पण रहेणी न्यारी ॥ २ ॥
al तुंही निराशी भाव पद साधे, हुं आशासंग विलुद्धो
तुं निश्चल हुं चलतुं सुधो, हुं आचरणे उंधो ॥ ३ ॥
तुज स्वभावथी अवळा माहरां, चरित्र सकल जगे जाण्या, अहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्या॥४॥
प्रेमनवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे, कान्ती कहे भवरान उतरता, तो वेळा नवि लागे ॥ ५ ॥
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