Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

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Page 24
________________ स्तवन - १३ (राग : शास्त्रीय) मूरति मोहनगारी, प्रभुजी तेरी, मूरति मोहनगारी पद्मप्रभु जिन तेरे ही आगे, ओर देवन छबी हारी ॥ १ ॥ समता शीतल भरी दोय अखियाँ, कमल पंखरिया वारी, आनन निराका चंदसो राजे, बानी सुधारस सारी ॥ २ ॥ लंछन अंग भयो तन तेरो, सहस अट्ठोतेर धारी, | भीतर गुणका पार न आवे, जे कोउ कहत विचारी ॥३ शशिरवि हरि को गुणलेइ, निरमित गात्र संचारी, वचन बुलंद कहांसे आयो, ये अचरिज मुजभारी ॥ ४ ॥ | यो गुण अनंतभरी छबी प्यारी, परम धरम हितकारी कवि अमृत कहे चित्त अवतारी, बिसरत नाहि बिसारी ॥५॥ MEETTERT10 19T RED

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