Book Title: Surendra Bhakti Sudha
Author(s): Piyushbhadravijay, Jyotipurnashreeji, Muktipurnashreeji
Publisher: Shatrunjay Temple Trust

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ स्तवन - ४ 3 हुतो पाम्यो प्रभुजीना पाय, आणान लोरे, हुं तो सांभळी त्हारा वेण, कानमा रोपु रे.. जनम जनमना फेरा फरतां, ध्याया न देवाधिदेवा, कुगुरू कुशास्त्रतणे उपदेशे, लाधी नहीं प्रभु सेवा १ ॥ कनक कथीरनो भेद न जाण्यो, काचमणी सम तोल्या विवेकतणी वात में न जाणी, विष अमृत करी घोल्या ॥२॥ समकितनो लवलेश न जाणुं, मिथ्या मतमां खुंत्यो; पाप तणे पंथे परिवरियो, विषये करी विगुत्तो ॥ ३ ॥ कोईक पूरव पुण्य संयोगे, आरज कुले अवतों; आदीश्वर साहिब मने मळीयो, तारक भवजल तरीयो ॥ ४ ॥ आटला दिवस में वात न जाणी, तुजथी रह्यो अलगो; उदयरतन कहे आज थकी प्रभु, तारे पंथे वळग्यो ॥ ५ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68