Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 10
________________ एक शुभकार्यमें भागलेनेके आनन्दका अनुभव होना सकारण ही है। पूर्वमेंभी कीर्तिकला सहित 'द्वात्रिंशिकाद्वयी' तथा कीर्तिकला संस्कृत व्याख्यासहित 'वीतरागस्तव' के प्रकाशनका अमूल्य सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ था। वाचकोंके द्वारा उसका आदर देखकर इस प्रकाशनके कार्यभारको द्विगुण उत्साहसे वहन करनेमें मैं समर्थ हुआ हूँ, जो स्वाभाविक ही है। ___ यहां वाचकोंसे सानुनय निवेदन है कि यद्यपि प्रूफ संशोधन आदिमें पूरी सावधानी रखी गयी है, फिरभी दृष्टि तथा मुद्रण दोषसे जो अशुद्धि रह गयी है-उसकेलिये सहानुभूति पूर्वक क्षमा करेंगे । तथा साथमें दिये गये शुद्धिपत्रका यथावसर उपयोग करेंगे । अन्तमें इस आशा तथा विश्वासके साथ कि - वाचक तथा अध्यापक इस स्तोत्रत्रयीके अध्ययन तथा अध्यापनके द्वारा यथा सम्भव . अवश्य ही अधिकाधिक लाभान्वित होंगे, तथा इस प्रकार श्रीवीतराग जिनेश्वरकी भक्तिसे अपनी आत्माको पवित्र करेंगे इति । भवदीय :भाईलाल, अम्बालाल, पेटलादवाला

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