Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 79
________________ . महादेवस्तोत्रम् ___ भावार्थ-पुराणोंमें तीनों देवोंकी शरीरकान्ति भिन्न भिन्न वर्णकी कही गयीं हैं। जैसे - ब्रह्मा लाल कान्तिवाले, महेश्वर श्वेत कान्तिवाले तथा विष्णु कृष्ण कान्तिवाले कहे गये हैं । किन्तु एक मूर्तिकी एक प्रकारकी ही कान्ति होती है, अनेक प्रकारकी नहीं। इसलिये भिन्न भिन्न वर्णके होनेके कारण तीनों देव भिन्न ही हैं, एक मूर्तिके तीन भाग नहीं। इसलिये उन तीनों देवोंको एक मूर्ति तीन भाग कहना अयुक्त है - ऐसा अभिप्राय है ॥ २६ ॥ अक्षसूत्री भवेद्ब्रह्मा द्वितीयः शूलधारकः । तृतीयः शङ्खचक्राङ्क एकमूर्तिः कथं भवेत् ? ॥ २७ ॥ पदार्थ --ब्रह्मा=ब्रह्मा नामके देव, अक्षसूत्री = अक्षसूत्रके लांछनवाले, भवेत् हैं, द्वितीयः दूसरे, अर्थात् महेश्वर नामके देव, शुलधारकः शूल - त्रिशूलके धारक-धारण करनेवाले, अर्थात् त्रिशूललान्छनवाले, तथा, तृतीयः तीसरे विष्णुनामके देव, शङ्ख. चक्राङ्क:-शंख तथा चक्रके अङ्क-लाञ्छनवाले कहे गये हैं। तो, एकमूर्तिः एकमूर्ति, कथम् कैसे, भवेत् ? = हो सकते हैं ? भावार्थ-पुराणों में प्रत्येक देवके लांछन भिन्न-भिन्न प्रकारके कहे गये हैं। जैसे - ब्रह्माका लांछन अक्षसूत्र , महेश्वरका लांछन त्रिशूल, तथा विष्णुका लांछन शंखचक्र कहे गये हैं। यहाँ यह ध्यानमें रखना चाहिये कि एक देवके अनेक अवतार होने परभी लांछन दूसरा


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