Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 89
________________ महादेवस्तोत्रम् पदार्थ—अर्हन् = श्रीवीतराग अरिहन्त - तीर्थङ्कर, रागद्वे विवर्जितः राग-विषयासक्ति, द्वेष-अनिष्ट विषयोमें अप्रीति, विवर्जितरहित, रागद्वेषसे रहित हैं-वीतराग हैं । इसलिये, पुण्यपापविनिर्मुक्तः -पुण्य-शुभकर्म, पाप-अशुभकर्म, विनिर्मुक्त - रहित, पुण्य तथा पापसे रहित - मुक्त हैं। अतः, शिवम् = कल्याणकी, इच्छता = इच्छा करनेवालेको कल्याण चाहनेवालेको, तस्य-उस वीतराग अरिहन्तका ही, नमस्कार: नमस्कार • प्रणाम-वन्दन-भक्ति, कर्त्तव्यः= करना चाहिये । कल्याण चाहनेवाले वीतरागकी ही भक्ति करें ॥३८॥ भावार्थ - तीर्थंकर रागद्वेषसे रहित - वीतराग हैं तथा सम्यग् ज्ञान एवं चारित्रके पालनसे उनके सभी कर्मोंका क्षय हो गया है । अतः वे मुक्त हैं। क्योंकि रागद्वेषसे तथा पुण्य पापसे मुक्त हीं मुक्त कहे जाते हैं । इसलिये कल्याण चाहने वालेको उनकी ही भक्ति करनी चाहिये। (जो देव रागद्वेष आदिसे युक्त हैं, वे मुक्त नहीं हैं। अतः उनकी भक्तिसे रागद्वेषका ही लाभ हो सकता हैः कल्याण. मुक्तिका नहीं। अतः अन्य देवोंकी भक्ति त्याज्य है-यह भाव है) ॥ ३८ ॥ अकारेण भवेद्विष्णू रेफे ब्रह्मा व्यवस्थितः । हकारेण हरः प्रोक्तस्तस्याऽन्ते परमं पदम् ॥ ३९ ॥ पदार्थ- अकारेण='अहँ ' यह मन्त्र अपने आदिमें स्थित अकाररूप वर्णसे, विष्णुः विष्णुस्वरूप, भवेत्-है, तथा, रेफे 'अहं ' इस मन्त्रके रेफरूप वर्णमें, ब्रह्मा = ब्रह्मा नामके देव,

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