Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 83
________________ महादेवस्तोत्रम् व्यवहार नहीं है। इसलिये तीनों देव एकमूर्ति तीनभाग नहीं हैंयह भाव है) ॥ ३१॥ कृते जातो भवेद्ब्रह्मा त्रेतायां च महेश्वरः । विष्णुश्च द्वापरे जात एकमूर्तिः कथंभवेत् ? ॥ ३२ ॥ पदार्थ-ब्रह्मा ब्रह्मानामके देव, कृते कृतयुग-सत्ययुगमें, जात: उत्पन्न, भवेत् हुए थे, च-तथा, महेश्वर: महेश्वरनामके देव, त्रेतायाम्=त्रेतायुगमें, (उत्पन्न हुए थे।) च-और, विष्णुः= विष्णुनामके देव, द्वापरे द्वापरनामके युगमें, जातः- उत्पन्न हुए थे। तो, एकमृतिः = एकमूर्ति, कथम् = कैसे, भवेत् ? = हो सकते हैं? ॥ ३२ ॥ . .. .... ... भावार्थ-पुराणोंमें - सत्ययुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग - ये चारयुग कहे गये हैं। तथा सत्ययुगमें ब्रह्माका, त्रेतायुगमें महेश्वरका, द्वापरयुगमें विष्णुका अवतार वर्णित है। तो एकमूर्ति कैसे हो सकते हैं ? (यदि एकमूर्ति हो तो प्रत्येक देवका पृथक् अवतारका वर्णन अयुक्त हो जायगा। एकमूर्ति मानने पर एक देवका अवतार दूसरे देवकाभी अवतार कहा जायगा। किन्तु ऐसा व्यवहार नहीं है। एक देवका अवतार दूसरे देवका नहीं कहा जाता। इसलिये तीनों देव एकमूर्ति नहीं हैं--ऐसा आशय है). ॥ ३२ ॥ ज्ञानं विष्णुः सदा प्रोक्तं ब्रमा चारित्रमुच्यते । सम्यक्त्वं तु शिवः प्रोक्तमहन्मूर्तिस्त्रयात्मिका ॥ ३३ ॥

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