Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 8
________________ 2. संस्कृत, हिन्दी तथा गुजराती व्याख्यासहित अनेक प्रकाशन अन्यत्र हो चुके हैं। फिरभी कीर्तिकलाव्याख्याकी अपनी विलक्षणशैली, शब्द - प्रकरण आदिको ध्यानमें रखते हुए पदार्थ तथा भावार्थका स्पष्टीकरण, चमत्कारिक लगे, ऐसे मनोग्राह्य अर्थोंका विश्लेषण तथा कर्त्ता के भावोंका प्रामाणिकरूपसे अधिकाधिक अनुसरण आदि सभी विशिष्टतायें द्वात्रिंशिकाद्वयी तथा वीतरागस्तवके जैसे हीं इस पुस्तक में भी अपने उत्कृष्टरूपसे विद्यमान हैं । - वीरजिनस्तोत्र उक्त आचार्यमहाराजविरचितप्रसिद्ध परिशिष्टपर्वका मंगलाचरण है । तथा इस स्तोत्रका सकलाई स्तोत्र के साथ हीं बड़े आदर एवं भक्ति से पाठ किया जाता है- -यह विदित है । महादेवस्तोत्र, प्रायः अतिसरल समझे जानेके कारण आज तक किसीभी व्याख्याताओंको आकृष्ट नहीं कर सकाथा- ऐसी सम्भावनाकी जा सकती है । किन्तु यहां यह विशेषतः ध्यान देने योग्य है कि इस स्तोत्रके कितने श्लोक अत्यन्त प्रसिद्ध एवं जैन समाजकी भावनाओंको अक्षरदेहमें अत्यन्त सरल एवं प्रभावोत्पादकरीतिसे व्यक्तकरते हैं । जैसे- इस स्तोत्र के अन्तिम श्लोक। यह श्लोक अत्यन्त प्रसिद्ध है । यह इस बातका प्रमाण है कि जैन विचारधारा व्यक्ति नहीं, किन्तु गुणको प्राधान्य देती है । इस स्तोत्रमें परमात्मा, अन्तरात्मा तथा बाह्यात्माका स्वरूप स्पष्टरूपसे बताया गया है । यहां बताये अर्थको देखते हुए ऐसा लगता है कि अन्यग्रन्थ के टीकाकारों के बाह्यात्माका पदार्थ अनुमान पर आधारित है । यह, सरल जानकर

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