Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ सकलाऽईस्तोत्रम् - पदार्थ -देशनासमये-(समवसरणमें) देशना देनेके समय में, ता: आगमों में वर्णित, प्रसिद्ध, वह, विश्वभव्यजनाऽऽरामकुल्यातुल्या: विश्व-जगत्, सभी, भव्यजन - भव्यप्राणी - मुक्तिकी योग्यतावाले, आराम - उपवन - बगीचा, कुल्या - नाली - नहर, तुल्य-समान । विश्वके सभी भव्यप्राणीरूपी उपवनकी नालीके समान, श्रीसम्भवजगत्पते: जगत्पति - जगदीश्वर - तीनों लोकों के स्वामी ऐसे जिनेश्वर श्रीसम्भवनाथकी, वाचा वाणी - प्रवचन, उपदेश, जयन्ति-सर्वोत्कृष्ट हैं ॥ ५ ॥ भावार्थ-(जैसे नालियों के द्वारा सतत सिंचनसे उपवनके वृक्ष लता आदिका पोषण एवं उसकी वृद्धि होती है, वैसे ही देशनासमयमें जिनकी वाणीसे विश्वके सभी भव्यात्मा चित्तविशुद्धिरूप पोषण एवं सम्यग्ज्ञान आदिकी वृद्धि प्राप्तकरते हैं, अत एव) देशनासमयमें विश्वके सभी भव्यप्राणीरूपी उपवन के लिये नाली समान जगत्के स्वामी श्रीसम्भवजिनकी वाणी विजय प्राप्तकरती है - सर्वोत्कृष्ट है । (यहां - जिससे सम्यग्ज्ञान प्राप्तहो तथा जो आत्मबलका पोषण करे, वही वाणी सर्वोत्कृष्ट है - ऐसा ध्वनि है) ॥ ५ ॥ अनेकान्तमताम्भोधिसमुल्लासनचन्द्रमाः । दद्यादमन्दमानन्दं भगवानभिनन्दनः ॥ ६ ॥ पदार्थ-अनेकान्तमताऽम्भोधिसमुल्लासनचन्द्रमा: अनेकान्त मत - प्रत्येकपदार्थमें अनन्तधर्मों के प्रतिपादन करनेवाला मत - सिद्धान्त - दर्शन = स्याद्वाददर्शन , अम्भोधि - समुद्र, समुल्लासन

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98