Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 61
________________ महादेवस्तोत्रम् नहीं। क्योंकि वे जितेन्द्रिय, वीतराग आदि गुणोंसे. युक्त नहीं हैं।) जिनशासनमें माने गये जिनेश्वररूपी महादेव तो शब्द - महादेव ऐसे नामसे, एवं महान् केवलज्ञान आदि होने के कारण अन्यदेवोंसे श्रेष्ठ देव - ऐसे अर्थसे तथा ऊपर वर्णित गुणोंसे भी महादेव हैं ॥ ६॥ शक्तितो व्यक्तितश्चैव विज्ञानाल्लक्षणात्तथा। मोहजालं हतं येन महादेवः स उच्यते ॥७॥ पदार्थ-येन-जिस देवने, मोहजालम् -मोह - ममताके जाल - समूहको - सभी प्रकारकी ममताओंको नाशकर दिया है- त्याग कर दिया है, सः वह देव, शक्तित: शक्तिसे, व्यक्तितश्चैव-तथा व्यक्तित्वसे, विज्ञानात वि - विशिष्टज्ञान - केवलज्ञानसे, तथा और, लक्षणात्-लक्षणसे, महादेवः महादेव, उच्यते-कहे जाते हैं। अथवा - जिस देवने, शक्तित: अपने क्षायिक अनन्त आत्मवीर्यसे तथा केवलज्ञानके प्रभावसे, व्यक्तितः एक एक करके, मोहोंका नाशकिया है, वह, लक्षणात =मोहनाशरूप लक्षणसे, महादेव कहे जाते हैं ॥ ७॥ भावार्थ-जिस (जिनेश्वर) देवने सभी प्रकारकी ममताओंका त्याग कर दिया है, वही मोहका नाश करनेवाले, सकल कर्मके क्षयसे आविर्भूत अनन्त आत्मवीर्य तथा सहज आदि अतिशयवाले असाधारण तथा अलौकिक व्यक्तित्व एवं केवलज्ञान और कहे गये तथा आगे कहे जानेवाले लक्षण - इन सभी गुणों के होनेसे महादेव

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