Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 73
________________ महादेवस्तोत्रम् दोषोंसे सहित - सकल - सगुण हैं। दोषवर्जितः=दोष - उक्त प्रकारके रागआदि दोषोंसे वर्जित -रहित होनेपर - मुक्त अवस्थामें, पञ्चदेहविनिर्मुक्तः पञ्च - पांच, देह - शरीरोंसे विनिर्मुक्त - रहित, तथा. परमम् सर्वोच्च, सर्वोत्कष्ट - सिद्धिशिलारूप, पदम्पद - स्थानको, सम्प्राप्तः प्राप्तकरने पर, निष्कलः उक्त प्रकारकी कलासे रहित - निर्गुण हैं ॥ १९ ॥ भावार्थ -जिनेश्वर देव, सांसारिक अवस्थामें संसारमें होनेवाले कर्मजनित जन्म, जरा, मरण, राग, द्वेष आदि दोषों से अथवा कर्मरूप दोषसे युक्त रहते हैं। इसलिये उस अवस्थामें वे, सकल= कला - सत्त्व,रजस् तथा तमस् - इनतीनों गुणोंसे युक्त होनेसे - सगुण हैं। तथा चारित्र पालन आदिके प्रभावसे उक्त दोषोंसे रहित होनेपर उन दोषोंके कारण होनेवाले औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस तथा कार्मण - इन पांच शरीरोंसे मुक्त होकर सिद्धशिला रूप परम पदको प्राप्त करलेते हैं, उस अवस्थामें, निष्कल-कलासे रहितनिर्गुण हैं। (दूसरे देव तो परिग्रह आदिके कारण दोष सम्पूर्ण ही हैं । इसलिये वह नामधारी निष्कल या निर्गुण हैं, वास्तविक रूपसे तो सदा सकल या सगुण ही हैं - यह भाव है) ॥ १९ ॥ एकमूर्तिस्त्रयो भागा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः । त एव च पुनरुक्ता ज्ञानचारित्रदर्शनात् ॥ २०॥ पदार्थ-(जिनेश्वर) एकमुनिः मूर्ति-स्वरूप - शरीर-व्यक्तिसे एक हैं, और, ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर. परम तथा कार्मण - इनारण होनेवाले आवसे उक्त दोषार सगुण

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