Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 75
________________ महादेवस्तोत्रम् भावार्थ – अन्यतीर्थिकों का अभिप्राय हैं कि ब्रह्मरूप एक महेश्वर- ये तीनों अंश हैं यहां विष्णु तथा महेश्वर - तीनों परस्पर व्यक्तिके हीं ब्रह्मा, विष्णु तथा यह प्रश्न उठता है कि - ब्रह्मा, एक दूसरे से भिन्न स्वरूपवाले हैं । तो इन तीनों की एक मूर्ति या एक मूर्ति के ये तीनों भाग कैसे हो सकते है ? ( एक मूर्त्तिके तीन अवयव हो सकते हैं, किन्तु पृथक् रही हुई तीन मूर्तियां एक मूर्ति या एक मूर्त्तिके भागरूप तीन मूर्तियां नहीं हो सकती । जो जिसका भाग होता है, वह एकत्र नहीं रहनेसे अपूर्ण होता है । यहाँ तो ब्रह्म सम्पूर्ण हैं, तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वरभी पृथक् पृथक् सम्पूर्ण हीं हैं । इसलिये एकका दूसरा भाग है ऐसा कहना अयुक्त है - ऐसा तात्पर्य है ) ॥ २१ ॥ 1 २२ • . कार्यं विष्णुः क्रिया ब्रह्मा कारणं तु महेश्वरः । कार्यकारणसम्पन्ना एकमूर्त्तिः कथं भवेत् ? ॥ २२ ॥ - पदार्थ – विष्णुः = विष्णु नाम के देव, कार्यम् = कार्य-फल- पुत्र हैं, ब्रह्मा ब्रह्मा नामके देव, क्रिया = क्रियारूप द्वार हैं. तु=तथा, महेश्वरः=महेश्वरनाम के देव, कारणम् = कारण निमित्त हैं । इस प्रकार, कार्यकारणसम्पन्नाः- कार्यकारण भावको प्राप्त हुई तीन मूर्तियां, एकमूर्त्तिः = एकमूर्ति, कथम् = कैसे, भवेत् ? - हो सकती हैं, अर्थात् नहीं हो सकती ॥ २२ ॥ भावार्थ- पौराणिकों का कहना है कि - महेश्वरकी प्रेरणा से ब्रह्मा के शरीर से विष्णु प्रगट हुए । ऐसी स्थिति में महेश्वर निमित्त

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