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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् । मल्लोंको जीत लिये है, अर्थात् आत्मामें अनादिकालसे रहनेके कारण अत्यन्त दृढ़ होनेसे दुस्त्याज्य ऐसे रागद्वेषोंका जिस देवने त्याग कर दिया है, उन देव (वीतराग जिनेश्वर)को ही मैं महादेव मानता हूं। अर्थात् दूसरे देवोंसे अजेयके जीतनेवालेको ही महादेव कहना योग्य है। अन्य तीर्थिकों के देवतो नामसे ही महादेव हैं। (अर्थ तथा गुणसे नहीं। क्योंकि वे स्त्री आदिका परिग्रह तथा शत्रु आदिके निग्रह आदिमें प्रवृत्त होनेसे रागद्वेष के ही अधीन हैं, उसके जीतनेवाले नहीं। इसलिये वे वास्तविकरूपसे महादेव नहीं हैं - यह अभिप्राय है) ॥ ५ ॥
शब्दमात्रो महादेवो लौकिकानां मते मतः । · शब्दतो गुणतश्चैवाऽर्थतोऽपि जिनशासने ॥ ६॥ .
पदार्थ-लौकिकानां लौकिक विषयों की प्राप्तिसे ही कृतार्थ ऐसे साधारण जनों (अन्यतीर्थिकों )के, मते-मतमें, मतः माने गये, महादेव महादेव, शव्दमात्र नाममात्र ही हैं। किन्तु, जिनशासने-जिनेश्वरसे उपदिष्ट सिद्धान्त के अनुसार माने गये महादेव, शब्दतः नामसे, अर्थतोऽपि अर्थसे भी, गुणतश्चैव और गुणसे भी, (महादेव हैं ) ॥ ६ ॥
भावार्थ --- सम्यक्तरहित तथा वस्तुके अनेकान्तात्मक स्वरूप के नहीं जाननेवाले लौकिक पदार्थ स्त्री, पुत्र तथा धन आदिको ही सर्वस्व माननेवाले मुक्तिमार्गसे वंचित ऐसे लौकिक - अन्यतीर्थिकों के मतमें माने गये महादेव नाम मात्रसे महादेव हैं (गुण तथा अर्थसे