Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 66
________________ कीर्तिकला हिन्दी भाषा ऽनुवादसहितम् १२. पदार्थ - यस्य = जिस देवके, महानन्ददये = आनन्द तथा दया महान् सर्वोत्कृष्ट हैं । तथा जो देव, महाज्ञानी - महान् सर्वद्रव्यपर्यायविषयक होनेसे सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी ज्ञानवाले, केवलज्ञानी महातपाः= महान् दूसरों से अत्यधिक तपस्वी, महायोगी = महान् - असाधारण योगी, महामौनी = महान् विशुद्ध मौनी मौनव्रतपालक तथा मुनिके महान् - उत्कृष्टलक्षणों से युक्त हैं। I सः = वही, महादेवः = महादेव, उच्यते = कहे जाते हैं ॥ १२ ॥ भावार्थ —– जिस देवका आनन्द महानू - शाश्वत, अखण्ड,, अनन्त एवं निरुपाधिक तथा निर्विकल्प होने के कारण सर्वोत्तम है, तथा जिस देवकी दया महान् सब जीवों के प्रति समान रूप से होने के कारण अन्यदेवों की अपेक्षासे अत्यधिक है । तथा जो देव अनन्त: तथा सर्वपदार्थविषयक होनेसे महान् ज्ञानवाले - केवलज्ञानी, दुष्कर, विशुद्ध एवं अत्यधिक अनशन आदि तप करनेके कारण महान् तपस्वी, सहज आदि अतिशयों का कारणभूत होनेसे असाधारण एवं अलौकिक योगसे युक्त तथा मुनियोंके सर्वोत्तमभावों एवं क्रियाओं से युक्त हैं। वह देवहीं महादेव कहे जाते हैं । (परतीर्थिक देव उक्त सभी गुणों से रिक्त होनेके कारण वास्तविक रूपसे महादेव नहीं कहे जा सकते - ऐसा भाव है ) ॥ १२ ॥ w महावीर्यं महाधैर्यं महाशीलं महागुणः । महामञ्जुक्षमा यस्य महादेवः स उच्यते ॥ १३ ॥ पदार्थ - यस्य - जिस देवके, महावीर्यम् = वीर्य आत्मबल महान् - सर्वाधिक हैं, महाधैर्यम्=धैर्य-सन्तोष महान् - सर्वोत्कृष्ट हैं, महाशीलम्

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