Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ महादेवस्तोत्रम् पदार्थ — येन = जिस देवने, महाक्रोधः = महान् अत्यन्त उग्र क्रोध, महामान: = महान् अत्यधिक मान - अभिमान - अहंकार, महामाया - महान् - अपार माया - शठता, महामदः - महान् - अत्यधिक मद - बल, विद्या, ऐश्वर्य आदिके अभिमान से हुई उद्धतता, तथा, महालोभः = महान् अत्यन्त लोभ, इन सभी दोषोंका, हतः = नाश किये हैं- त्याग कर दिये हैं, सः = वह देव, महादेवः = महादेव, उच्यते = कहे जाते हैं ॥ ११ ॥ भावार्थ जिस देवने (ज्ञान तथा चारित्र के बलसे) अत्यन्त उत्कट, हिंसादिमें प्रवृत्ति कराने तथा स्थायी एवं अधिक परिमाण में होनेके कारण महान् क्रोध, गुरु आदिकी अवज्ञा करानेवाले तथा अत्यधिक होनेके कारण महान् विद्या कुल बल आदिका अभिमान, अपार माया, अविनय आदिका प्रेरक तथा बलवत्तर बल आदि के अभिमान से होनेवाली महान् उद्धतता, एवं दुस्त्याज्य होनेसे महान् लोभ, इन सभी दोषों- कषायों का नाश-त्याग किया है । अर्थात् जो देव कषाय रहित एवं निर्मद हैं, वह देव हीं महादेव कहे जाते हैं । ( वीतराग, ज्ञानी एवं संयमी होनेके कारण जिनेश्वर उक्त सभी क्रोध आदि कषायों तथा मदसे रहित हैं, इसलिये वही महादेव हैं। अन्यतीर्थिकों के महादेव पुराण आदिमें क्रोधी मानी आदि रूप से वर्णित हैं, इसलिये वह महादेव नहीं हैं - ऐसा अभिप्राय है ) || ११ ॥ १२ - महानन्ददये यस्य महाज्ञानी महातपाः । महायोगी महामौनी महादेवः स उच्यते ॥ १२ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98