Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 64
________________ कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् । ११ महाकामो जितो येन महाभयविवर्जितः। महाव्रतोपदेशी च महादेवः स उच्यते ॥ १० ॥ पदार्थ-येन जिस देवने, महाकामा महान् अत्यन्त उत्कट काम - कामना - वासना - कामिनीजिज्ञासा आदिका, हत:= नाश - त्याग किया है, तथा जो, महाभयविवर्जितः महान् भयसे विवर्जित-रहित हैं, च तथा, महावतोपदेशी-महान् व्रतों के उपदेश करनेवाले हैं, सः वह देव हीं, महादेव महादेव, उच्यते-कहे जाते हैं ॥ १० ॥ भावार्थ - जिस देवने अत्यन्त उत्कट ऐसी भोग तथा उपभोगकी इच्छारूपी महाकामका (चारित्रके पालन आदिसे ) त्याग - दमन किया है, अर्थात् जो सर्वथा निष्काम हैं, तथा जो (सकल कर्मोंका क्षय करनेसे) जन्म जरा मरण आदिरूप भवके महान् भयोंसे रहित - अत्यन्त निर्भय हैं। एवं सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह रूपी पांच महान् व्रतोंके उपदेश करनेवाले हैं, वह देव ही महादेव कहे जाते हैं। (जिनेश्वरमें यह सभी गुण हैं, इसलिये वही महादेव हैं। अन्य तीथिकों के महादेव तो स्त्री आदि परिग्रहोंसे युक्त होनेके कारण कामी, शत्रु आदिसे भयभीत एवं हिंसासे होनेवाले निकृष्ट यज्ञ आदिके उपदेशक होनेसे शब्दसे ही महादेव हैं गुणोंसे नहीं-यह तात्पर्य है ) ॥ १॥ महाक्रोधो महामानो महामाया महामदः । महालोभो हतो येन महादेवः स उच्यते ॥ ११ ॥

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