Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 62
________________ कीर्तिकला हिन्दी भाषाऽनुवादसहितम् कहे जाते हैं । अथवा जिस देवने अपने क्षायिक अनन्त आत्मवीर्य और केवलज्ञान के प्रभावसे एक एक करके मोहोंका नाश कर दिये हैं, ऐसे वह (जिनेश्वर) देवहीं महादेव कहे जाते हैं । (अन्यतीर्थिकों के महादेव, स्त्रीपुत्र आदिमें ममत्व होनेके कारण तथा उक्त प्रकारके शक्तिआदि गुण नहीं होनेके कारण गुणसे या अर्थसे महादेव नहीं हैं - यह आशय है ) ॥ ७ ॥ नमोऽस्तु ते महादेव ! महामदविवर्जित ! | महालोभविनिर्मुक्त ! महागुणसमन्वित ! || ८ ॥ पदार्थ - महामदविवर्जित ! = हे महान् मद - उद्दण्डता - अहङ्कारसे, विवर्जित- रहित, निरभिमानी, महालोभविनिर्मुक्त != हे महान् लोभसे, विनिर्मुक्त रहित, निर्लोभी, महागुणसमन्वित != हे महान् गुणों से समन्वित - विभूषित !, महादेव ! - हे महादेव !, जिनेश्वर, ते= आपको, नमः = ( मेरा ) नमस्कार, अस्तु = हो ॥ ८ ॥ भावार्थ - ज्ञान आदिका उत्कर्ष रहने पर भी उसके मदसे -रहित होने के कारण तथा किसीभी प्रकारके मद नहीं रहने के कारण महान् निरभिमानी, किसीभी प्रकारके परिग्रह नहीं रहने से तथा - सभी प्रकार के लोभसे रहित होनेके कारण महान् निर्लोभी, असा - धारण एवं अलौकिक निरभिमानता, निर्लोभता, सभी प्राणियों का उपकार तथा केवल ज्ञान आदि महान् गुणों से विभूषित ऐसे है महादेव ! जिनेश्वर ! आपको मेरा नमस्कार - प्रणाम है । ( अन्य तीर्थिकों के महादेव तो बल आदिके अभिमान तथा श्मशानवास,

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