Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 59
________________ महादेवस्तोत्रम् __ भावार्थ-अपने शरीरमें ही जो धन, पशु आदि चुरानेबाले चोरोकी अपेक्षासे अधिक बलवान् तथा लौकिक चोर जिसको नहीं चुरा सकते ऐसे सम्यग्दर्शन, ज्ञान आदि आत्माके सर्वस्वके चुरानेवाले इन्द्रियरूपी महान् चोर रहे हुए हैं, उनको जिस अनन्तज्ञान आदिसे युक्त देवने जीत लिए हैं, वह जितेन्द्रिय देव ही महान् चोरोंके जीतनेके कारण महादेव कहे जाते हैं। (किन्तु परतीर्थिकों के महादेव तो स्त्री आदि परिग्रहवाले हैं, इसलिये वे अपने शरीरमें रहे हुए उन महान् चोरोंके जीतनेवाले नहीं हैं। किन्तु उन चोरों के ही अधीन हैं। अतः वे शब्दमात्रसे ही महादेव हैंयह भाव है) ॥ ४ ॥ रागद्वेषौ महामल्लौ दुर्जयौ येन निर्जितौ। महादेवं तु तं मन्ये शेषा वै नामधारकाः॥५॥ पदार्थ-येन=जिस देवने, रागद्वेषौ रागद्वेषरूपी, दुर्जयौ .दुर्जय - बड़े कष्टसे जीतने योग्य, महामल्लो-महान् मल्ल - पहलवानों को, निर्जितौ-जीतलिये हैं, तम्=उस देवको, तु=हीं, महादेवम्= महादेव, मन्ये=मैं मानता हूं। शेषाः-अवशिष्ट, उस देवके अतिरिक्त दूसरे देव, अन्यतीर्थिकोंके महादेव, वै=तो, नामधारकाः महादेव ऐसे नामधारण करनेवाले ही हैं। (किन्तु वास्तवमें महान् देव होनेके कारण महादेव नहीं हैं) ॥ ५ ॥ भावार्थ- जिस देव (जिनेश्वर)ने रागद्वेषरूपी ( अनादि कालसे रहनेके कारण अत्यन्त बलवान् होनेसे) दुर्जय ऐसे महान्

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