Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 26
________________ कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् जगत् - विश्वके सर्वद्रव्यपर्याय, जिनके अत्यन्त स्वच्छ ऐसे केवलज्ञानरूपी दर्पणमें सर्वद्रव्यपर्याय प्रतिबिम्बित - गोचरीभूत हैं ऐसे, अर्थात् जैसे स्वच्छ दर्पणमें सभी पदार्थ प्रतिबिम्बित होते हैं, वैसे जिनके विशुद्ध केवलज्ञानके सभी पदार्थ विषय हैं-जो केवलज्ञानके द्वारा सभी पदार्थोंके जाननेवाले-सर्वज्ञ हैं। अर्हन्तम्-अरिहन्त, तीर्थकर, अजितम् श्रीअजितस्वामिकी, स्तुवे (मैं) स्तुति करता हूं ॥ ४ ॥ भावार्थ-विश्वरूपी कमलाकरके प्रबोधित करने में सूर्यसमान, अर्थात् जैसे सूर्य कमलसमूहोंको प्रबोधित - विकसित करते हैं, वैसे ही विश्वके प्रबोधित करनेवाले - विश्वको सन्मार्गका प्रबोध देनेवाले, तथा जिनके अत्यन्त स्वच्छ ऐसे केवलज्ञानरूपी दर्पणमें सम्पूर्ण विश्व प्रतिबिम्बित - गोचरीभूत है, अर्थात् जैसे स्वच्छ दर्पणमें सभी पदार्थ स्पष्टरूपसे प्रतिबिम्बित होते हैं, अथवा जैसे स्वच्छ दर्पण अत्यन्त स्पष्टरूपसे सभी पदार्थों के प्रतिबिम्बका ग्रहण करता है, वैसे हीं जिनके विशुद्ध केवलज्ञानमें सभी द्रव्य तथा उनके पर्याय प्रतिबिम्बित - गोचर हैं, अथवा जो विशुद्ध केवलज्ञानके द्वारा स्पष्टरूपसे सभी पदार्थों का ग्रहण करते हैं - सभी पदों को जानते हैं, अर्थात् जो सर्वज्ञ हैं, ऐसे तीर्थङ्कर श्री अजितस्वामीकी मैं स्तुति करता हूं। (यहां - जो सर्वज्ञ हैं, तथा सम्पूर्ण विश्वके उपकारक हैं, उनकी स्तुतिसे ही इष्टलाभ हो सकता है-ऐसा ध्वनि है) ॥ ४ ॥ विश्वभव्यजनाऽऽरामकुल्यातुल्या जयन्ति ताः । देशनासमये वाचः श्रीसम्भवजगत्पतेः ॥ ५॥

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