Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् त्रि - तीन, जगत् - लोक, जन - प्राणी, सामान्यरूपसे तीनों लोकों के प्राणियोंको, नामाऽऽकृतिद्रव्यभावैः नाम - ऋषभ, महावीर आदि नाम, आकृति - तीर्थकरोंकी प्रतिमा, द्रव्य - तीर्थकर होनेवाले जीव, भाव - अतिशय, केवलज्ञान आदि भावोंसे युक्त तीर्थङ्कर, ऋषभ महावीर आदि नामोंसे, प्रतिमा आदि रूपसे, तीर्थक्करभावरहित संसारी अवस्थासे तथा तीर्थंकर रूपसे, पुनत:=(स्मरण, दर्शन, सेवा तथा उपदेश आदिके द्वारा) पवित्र करनेवाले, अहंता अरिहन्तों - तीर्थकरोंकी, समुपास्महे-उपासना करता हूं ॥ २ ॥ भावार्थ-जो सभी क्षेत्रों तथा सभी कालों में तीनो लोकों के प्राणियोंको उनके द्वारा किये गये तीर्थङ्करोंके - नामस्मरण, प्रतिमा आदिके दर्शन, वन्दन, संसारी अवस्थामें सेवा, उपदेशोंका श्रवण तथा पालन आदिसे चित्तशुद्धि होनेके कारण - पवित्र करते हैं। मैं उन तीर्थङ्करोंकी भक्तिभावपूर्वक तन, मन तथा वचनसे उपासना करता हूं। (जिससे दूसरोंके जैसे ही मेरे चित्तकी शुद्धि तथा इष्टसिद्धि हो। क्योंकि चित्तशुद्धिके विना कोईभी शुभकाम सांगोपांग पूरा नहीं हो सकता - ऐसा अभिप्राय है) ॥ २॥ आदिमं पृथिवीनाथमादिमं निष्परिग्रहम् । . आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥३॥ पदार्थ-आदिमम् सर्वप्रथम, पृथिवीनाथम् पृथिवीके नाथ - ईश - राजा - पालक, राजाओंमें सर्वप्रथम, आदिमम् सर्वप्रथम, निष्परिग्रहम् निष्परिग्रही- स्त्री, पुत्र, राज्य आदि परिग्रहोंसे

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98