Book Title: Stotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Author(s): Hemchandracharya, Kirtichandravijay, Prabodhchandravijay
Publisher: Bhailalbhai Ambalal Petladwala

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Page 35
________________ सकलाऽईस्तोत्रम् तथा उपदेशसे भवदुःखोंसे छुटकारा पायें। (यहां-जो स्वयं मुक्त हैं, तथा तत्त्वज्ञानके उपदेशक हैं, वहीं मुक्ति दे सकते हैं - यह ध्वनि है) ॥ १३ ॥ विश्वोपकारकीभूततीर्थकृत्कर्मनिर्मितिः । सुरासुरनरैःपूज्यो वासुपूज्यःपुनातु वः ॥ १४ ॥ पदार्थ-विश्वोपकारकीभूततीर्थकृत्कर्मनिर्मितिः = विश्वतीनों लोकोंके प्राणी, उपकारकीभूत - उपकारक, तीर्थकृत् - तीर्थक्कर, कर्म - नामकर्म, निर्मिति - निर्माण - उपार्जन, तीनों लोकों के उपकारक. ऐसे तीर्थकर नामकर्मके उपार्जन करनेवाले, अत एव, सुरासुरनरैः =देव, असुर तथा मनुष्योंसे, पूज्य: पूजित, वासुपूज्य: जिनेश्वर श्रीवासुपूज्यनाथ, का=आप भव्योंको, पुनातु-पवित्र करें ॥ १४ ॥ . भावार्थ-जिन्होंने तीर्थकरनामकर्मका-उसके प्रभाव से सन्मार्गका उपदेश देकर तीनों लोकों के उपकारके लिये - उपार्जन किया है - ऐसे, सुर, असुर तथा मनुष्योंके पूज्य जिनेश्वर श्रीवासुपूज्यनाथ आप भव्योंको (दर्शन, उपदेश आदिकेद्वारा) पवित्र करें । ( यहां-तीर्थकर नामकर्मके उपार्जन करनेवाले ही विश्वके उपकारक तथा विश्व पूज्य हो सकते हैं। तथा उनके दर्शन एवं उपदेशसे ही आत्मा पवित्र होती है - यह ध्वनि है) ॥ १४ ॥ विमलस्वामिनो वाचः कतकक्षोदसोदराः। जयन्ति त्रिजगचेतोजलनैमल्यहेतवः ॥ १५ ॥

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