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॥ मटके की आपबीती ॥ देहदुक्खं महाफलम् ॥
किसी सुन्दरी के काले-काले कोमल मखमली केशों पर जल से भरा मटका सवार था। किसी युवक की नजर उस पर पड़ी। उसने उत्सुकता पूर्वक मटके से पूछा- आपको यह सुख कैसे मिला है ? जरा मुझे भी बताइये; जिससे मैं भी अपने जीवन में सुखी हो सकूँ ।
इस पर मटका बोला - भाई सुख पाने के लिए तो कठोर तपस्या करनी पड़ती है और अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं, तब कहीं जा कर सुख मिलता है।
फिरमटका अपने जीवन का इतिहास बताते हुए बोला
पहले तो हम कुल' तज्यो,
रासभ
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हुए सवार ।
कूट पीट सीधो कियो,
दियो चाक पर डार ||
शीष काट भू पे धर्यो,
सही शीत अरु धूप । तोक अवाडे थिर कियो,
निकल्यो रूप अनूप ॥ मालिक से ग्राहक मिल्यो,
लीन्हो ठोक बजाय ।
इतना संकट मैं सह्या,
चढ़ा शीष पै आय ।।
मटके की बात बिल्कुल सत्य है ।
दुःख की खाई पार किये बिना सुख की हरियाली नजर नहीं आती ।
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