Book Title: Story Story
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 58
________________ सच्ची भक्ति यह उन दिनों की बात है जब पाँचों पांडव जुए में अपना पूरा राजपाट हार कर जंगल-जंगल भटक रहे थे। धर्मराज युधिष्ठिर घंटो पूजा-पाठ में लगे रहते। एक बार जब वे पूजा से उठे तो द्रौपदी ने कहा, ''महाराज ! आप भगवान् का इतना भजन-पूजन करते हैं, फिर भगवान से यह क्यों नहीं कहते कि वे हमारे संकट दूर कर दें ? हमारी कितनी बुरी अवस्था हो रही है !" "सुनो द्रौपदी !" धर्मराज युधिष्ठिर ने शांत स्वर में कहा, "मैं परमात्मा का भजन सौदे के लिए नहीं करता, अपने मन की शांति के लिए करता है, शक्ति पाने के लिए करता है। इससे मुझे दुःख सहने की क्षमता प्राप्त होती है।" द्रौपदी सच्ची भक्ति का अर्थ समझ गई। सच्ची भक्ति स्वार्थ के लिए नहीं होती। ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orn

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