Book Title: Story Story
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ दुःख की गठरी सुख साधन मे नहीं, साधना में है। साधना करते रहो, सुख मिलता रहेगा। एक नगर के लोग बड़े दुःखी थे। अचानक एक दिन आकाशवाणी हुई कि लोग अपना-अपना दुःख गठरी में बाँधकर ले जाएँ और शहर के बाहर अमुक जगह पर पटक कर वहाँ से सुख बाँध लाएँ। लोग बड़े खुश हुए। उन्होंने अपने दुःखों की गठरी बाँधी और चल दिए। फिर दुःख को फेंक कर और सुख को लेकर वे अपने-अपने घर लौट आए। सारे शहर में सुख का साम्राज्य छा गया। लेकिन मुश्किल से दो दिन बीते होंगे कि लोग फिर दुःखी होने लगे-यह सोचकर कि उनका पड़ोसी जितना सुखी है, वे उतने सुखी क्यों नहीं हैं ? दूसरे के पास यह है, वह है-पर उनके पास तो उतना नहीं है। लेकिन एक साधु मस्त था और हँस रहा था। वे उसके पास गए और बोले, “महाराज ! दुःख हमारा पीछा नहीं छोड़ता, लेकिन आप इतने सुखी कैसे हैं ?" साधु बोला, "बात यह है कि तुम लोग सुख बाहर खोजते हो, पर सुख बाहर है कहाँ ! सुख तो अपने अंदर है।" सुख और आनंद ऐसे इन हैं जिन्हें जितना अधिक तुम दूसरों पर छिड़कोगे उतनी ही अधिक सुगंध तुम्हारे अंदर आएगी। Jain Education International www.jainelibrary.ora 101

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132