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अरब के खलीफा हजरत उमर ने अपने किसी सरदार को किसी प्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया । तभी एक छोटा बच्चा दौड़ता हुआ हजरत उमर के पास आया । बस, फिर क्या था, प्यार से उन्होंने बच्चे को चूमा और उठाकर गोद में बैठा लिया।
यह वह सरदार, जिसकी गवर्नर के पद पर नियुक्ति हुई थी, सब कुछ देखकर चकित था। वह बोला, "खलीफा साहब! मेरे यहाँ भी बच्चे हैं, पर मैंने कभी उनसे इस तरह का प्यार नहीं जताया। वे मुझसे इतना डरते हैं कि मेरी आवाज सुनते ही भीगी बिल्ली बन जाते हैं ।"
"मुझे
यह सुनते ही हजरत उमर गंभीर हो गए। उन्होंने कहा, अपने गलत चुनाव के लिए अफसोस है। पर खुदा का लाखलाख शुक्र कि तुमने समय रहते मुझे चेता दिया। जब तुम्हें अपने बच्चों से ही प्यार नहीं तो तुम मेरी प्रजा को कैसे प्यार कर सकोगे !" और यह कहकर खलीफा ने नियुक्ति पत्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
पोथी पढ़-पढ़ढ़ जग मुआ, भया न पंडित कोय ।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
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मनुष्य जिससे डरता है, उससे प्रेम नहीं करता ।
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अपने आश्रितो को खूब प्रेम एवं वात्सल्य दे कर उन्हे अच्छे संस्कार दो। इसी तरह बड़प्पन सार्थक होता है।
प्रेम का
झरना
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