Book Title: Story Story
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 57
________________ वसंत की सुबह एक नन्हा चरवाहा घाटी के ढलान पर अपनी भेड़-बकरियाँ चरा रहा था। बकरियाँ चर रही थीं और वह अपनी मधुर आवाज में एक गीत गुनगुना रहा था। तभी वहाँ का राजा शिकार के लिए भटकता-भटकता उस घाटी में पहुँचा । चरवाहे को इतना खुश देखकर राजा ने उससे पूछा, "तुम इतने प्रसन्न क्यों हो?" चरवाहा राजा को पहचान नहीं पाया। बोला, "क्यों प्रसन्न न होऊँ ! शायद हमारा राजा भी इतना समृद्ध नहीं होगा जितना कि मैं हूँ।'' ''ऐसा है !" राजा हैरान हो उठा, "पर यह तो बताओ, तुम राजा से ज्यादा धनी कैसे हो?" For Private & Personal ।। सुहाई संतोससाराई।। सुरखी होने के लिए धन का होना जरूरी नहीं। संतोष का होना जरूरी है। 0 सुख-समृदि "मेरे पास प्रकृति की संपदा है। यह सूरज मुझे रोशनी देता है, यह नीला आकाश मुझे बाँहें पसारे दुलारता है। यह घाटी अपनी पीठ पर मुझे लादे हुए किसी अनंत यात्रा का सुख देती है। मैं मस्त इन घने जंगलों की सुरसुराती हवा की बाँसुरी सुनता रहता हूँ। मुझे रोज पेट भर खाना मिल जाता है। साल भर में मैं अपनी जरूरत भर का कमा लेता हूँ। न चोरों का डर, 9 न छीना-झपटी की चिंता । अब तुम ही बताओ, सुख-संतोष हरी की जो संपदा मेरे पास है वह राजा के पास होगी ?" Jain Education International

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